खासियत के हिसाब से दाम निर्धारित : गर्मी की शुरूआत के साथ ही कुम्भकारों ने मटके, घड़े व मिट्टी की सुराही बनाने का काम शुरू कर दिया था। वहीं अब तापमान में तेजी के साथ ही इनकी खरीदारी भी शुरू हो गई है। शहर के कई प्रमुख चौराहों के आसपास सडक़ किनारे लगी अस्थायी दुकानों पर छोटे घड़े व मटके 50 से लेकर 70 रुपए तथा नल वाले मटके 120 से 150 रुपए प्रति नग के हिसाब से बिक्री के लिए उपलब्ध है।
सेहत के लिए वरदान : मिट्टी से बने मटके में बहुत सूक्ष्म छिद्र होते हैं, जिनसेहल्का-हल्का पानी रिसता रहता है और घड़े को बाहर से गीला रखता है। इससे हवा के संपर्क में आने से घड़े का पानी शीतल रहता है। वहीं मिट्टी में पाए जाने वाले मिनरल्स शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करते हैं। इसके साथ ही मिट्टी के बर्तन में पानी रखने से पानी में मौजूद प्राकृतिक विटामिन व मिनरल्स शरीर के ग्लूकोज लेवल को बनाए रखते हैं। इससे शरीर को ठंडक मिलती है। जिन लोगों को पित्त की समस्या रहती है, उनके लिए भी मटके का पानी वरदान है। यह पित्त को संतुलित करता है तथा पेट की समस्याओं को भी दूर करता है। यही नहीं वाटर प्यूरीफायर की तरह से कार्य करने से पानी की गंदगी व टॉक्सिन्स भी निकल जाते हैं। चिकित्सकों के अनुसार मानव शरीर की प्रकृति अम्लीय है, जबकि मिट्टी की प्रकृति क्षारीय है। इसलिए क्षारीय बर्तनों का पानी शरीर की अम्लीय प्रकृति के साथ प्रक्रिया कर उचित पीएच संतुलन बनाए रखता है।
इससे अम्लीयपित्त एवं पेट की समस्यों को दूर करने में भी मदद मिलती है।
शरीर के लिए अनुकूल
शरीर के अनुकूल होने के कारण मिट्टी के बर्तन में रखे पानी का सेवन गले की खराश सहित तापमान में बदलाव से संबंधित बीमारियों से बचाव करता है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है। मिट्टे के बर्तन में रखा शीतल जल स्वास्थ्य के हिसाब से सर्वथा उपयुक्त है।
-डॉ. महिपाल सिंह चौहान, वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी, सामान्य चिकित्साल।