अग्यारा बांध के पानी में रसायनयुक्त अनउपचारित (अम्लीय) पानी जाने से बांध में हाई सीओडी (केमिकल ऑक्सीजन डिमांड) से भी ज्यादा हो गया है, जो पर्यावरण के मापदंड़ से बहुत ज्यादा है। बताया जाता है कि हर साल यहां से प्रदूषण मंडल और रीको की ओर से सैम्पल लिए जाते हैं। सैम्पलों की रिपोर्ट को कचरे में डाल दिया जाता है। रीको और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों की मिलीभगत से ये सब खेल चल रहा है। अब तक कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है।
लोगों में बढ़ रही बीमारियां लम्बे से अग्यारा बांध में केमिकल युक्त पानी पहुंच रहा है, जिससे भूजल सहित भूमि पर भी असर होने लगा है। विशेषज्ञों का कहना है कि मिट्टी में प्रदूषण रम गया है, जिससे 200 साल तक मिट्टी का प्रदूषण खत्म नहीं होगा। नालों में केमिकल की गाद जम चुकी है, जिसकी बदबू के कारण नाले के आसपास रहने वाले गांव और परिवारों का रहना मुश्किल हो गया है। वहीं, हवा के साथ अम्लीय मिट्टी के कण (फोम) उड़कर दूर तक फैल रहे हैं, जिससे लोग खुजली, आंखों में जलन और सांस संबंधित बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। साथ ही पानी का उपयोग खेती और पीने लायक नहीं रहा है।
हर माह लिया जाए पानी का सैम्पल प्रदूषण मंडल और रीको विभाग की संयुक्त टीम हर माह उद्योगों से निकलने वाले केमिकल युक्त जल का सैम्पल ले और प्रदूषण की रिपोर्ट के अनुसार उद्योगों पर कार्रवाई हो तो काफी हद तक प्रदूषण पर शिकंजा कसा जा सकता है। हालांकि विभाग की ओर से प्रत्येक तीन माह में एक बार ही सैंपल लिया जाता है। जिसकी रिपोर्ट भी देरी से आती है।
एमआईए के अधिकांश उद्योगों में ट्रीटमेंट प्लांट लगे हुए हैं। यहां की फैक्ट्रियों से केमिकल युक्त पानी नहीं छोड़ा जा रहा है। यह पानी आसपास के गांवों और ईएसआईसी हॉस्पिटल का है, जो अग्यारा बांध में पहुंच रहा है।
– गोविंद गर्ग, अध्यक्ष, मत्स्य संघ सभी फैक्ट्रियों से वाटर ट्रीटमेंट के लिए कहा गया है। समय-समय पर कार्रवाई की जा रही है। नाले में केमिकल युक्त पानी छोड़ने वाली फैक्ट्रियों की जांच की जाएगी।
– दीपेन्द्र जारवाल, आरओ, प्रदूषण मंडल, अलवर