शास्त्री से जुड़े तमाम सियासी किस्से इस शहर में आपको सुनने को मिलेंगे, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि लाल बहादुर शास्त्री इसी शहर के भीड़ में खो गए थे। उनको ढूंढने के लिए रिपोर्ट दर्ज कराई गई एनाउंस कराया गया। अंत में उनको नाव में ले जा रहे गोपालको से बचाया गया था। किसे मालूम था कि भीड़ में खोने वाला यह बच्चा एक दिन संगम भूमि के एक गांव में खड़ा होकर भारतीय राजनीति का अमर नारा दे जाएगा।
संगम स्नान करने आये थे
‘धरती के लाल’ नामक पुस्तक में शास्त्री से जुड़े तमाम रोचक तथ्यों को लिखा गया है। जिसमें यह वाक्या भी दर्ज है। शास्त्रीजी अपने माता और पिता के साथ माघ मेले में संगम स्नान करने आए थे। उस समय उनकी उम्र बहुत ज्यादा नहीं थी। मकर संक्रांति के दिन माता पिता के साथ स्नान करने आए शास्त्री अचानक मेले में खो गए। बहुत खोजबीन के बाद जब शास्त्री जी के माता-पिता निराश हो गए। उन्होंने संगम पुलिस चौकी में रिपोर्ट दर्ज कराई। बाद में जब पता चला कि नाव पर एक बच्चा रो रहा है। शास्त्रीजी के माता पिता ने उनको गोपालकों से झगड़कर बेटे को वापस लिया था।
इसे भी पढ़े –आनंद भवन में बापू का वह कमरा जहां आज भी सुरक्षित है,पूजा के बर्तन, कपड़े और उनकी यादें
दो बार इलाहाबाद के सांसद
शास्त्री इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र से 1957 और 1962 में लोकसभा का चुनाव जीते और संसद पहुंचे थे। 1965 में भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध के दौरान इलाहाबाद जिले के करछना विधानसभा के उरुवा ब्लाक में एक जनसभा को संबोधित करते हुए शास्त्री जी ने पहली बार जय जवान जय किसान का नारा दिया था। यह नारा हमेशा के लिए भारतीय राजनीति में अमर हो गया।
जब संकट में था पूरा देश
देश के जाने-माने साहित्यकार और लेखक हरी मोहन मालवीय बताते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था। पड़ोसी देश के समर्थन में अमेरिका ने भारत को गेहूं निर्यात करने से मना कर दिया। एक तरफ जवान जंग लड़ रहे थे। तो दूसरी तरफ अमेरिका के फैसले से भारत में रोटी का संकट मंडरा गया। युद्ध के दौरान अमेरिका के फैसले से सरकार परेशान हो गई। उस वक्त देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री अन्न संकट से निपटने के लिए सीधे किसानों के बीच पहुंचे थे। मालवीय बताते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री इलाहाबाद लोकसभा के उरुआ ब्लॉक चौराहे पर एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। यहीं उन्होंने पहली बार ‘जय जवान-जय किसान’ का नारा दिया था । लाल बहादुर शास्त्री ने इसी चौराहे पर खड़े होकर संकल्प लिया था एक वक्त खाएंगे लेकिन अमेरिका के सामने नहीं झुकेंगे। इस सभा में उनके बेटे और बाद में केंद्रीय मंत्री बने अनिल भी साथ थे। शास्त्रीजी को किसानों और आम जनता का पुरजोर समर्थन मिला। यह नारा देश के दिलों की धड़कन बन गया। एक बड़ी आबादी ने एक वक्त का भोजन करने की कसम खाली। लाल बहादुर शास्त्री खुद एक वक्त का अन्न त्याग दिए। लोगों ने कसम निभाई भी, लेकिन 11 जनवरी 1966 को लालआ बहादुर शास्त्री की ताशकंद में मौत हो गई। मौत की खबर से पहले भारतीय सेना ने पाकिस्तान से युद्ध जीत लिया था। यह नारा अमर हो गया।