80 के दशक के अंतिम सालों में जवाहर पंडित का नाम इलाहाबाद सहित पूर्वांचल भर में बहुत तेजी से उभर रहा था। तेज तर्रार और बुलंद आवाज के धनी जवाहर पंडित का सियासी कद बड़ा बन रहा था। वहीं 1993 के विधानसभा के चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने जवाहर पंडित को झूंसी विधानसभा से अपना उम्मीदवार बनाया। इस सीट पर जवाहर पंडित ने शानदार जीत हासिल की।वह सपा के शीर्ष नेताओं के चहेते बन गए। वही सियासत में खुद को लगभग स्थापित कर चुके जवाहर पंडित ने बालू और शराब के ठेके में भी हाथ आजमाना शुरू किया। कहा जाता है कि यहीं से उनकी दुश्मनी की शुरुआत हुई। हालांकि इस बात को करवरिया परिवार हमेशा नकारता रहा।
वैन कर रही थी पीछा
बताया जाता है कि 13 अगस्त 1996 को जवाहर यादव झांसी में अपनी विधानसभा क्षेत्र से लोगों से मिलकर वापस लौट रहे थे। उनकी मारुति कार थी जिसको ड्राइवर गुलाब चला रहा था। उनके साथ उनका प्राइवेट गनर कल्लन बैठा था। गाड़ी मेडिकल चौराहे के पास पहुंची थी। तभी गुलाब ने पंडित को बताया कि एक वैन काफी देर से पीछे चल रही है। उन्होंने कहा कोई बात नहीं चुनावी मौसम है चलते रहो। लेकिन जैसे-जैसे गाड़ी सिविल लाइन की ओर बढ़ रही थी। वह वैन करीब आ रही थी। सिविल लाइन के सुभाष चौराहे के पास पहुंचते-पहुंचते पंडित ने अपनी गाड़ी की रफ्तार बढ़वा दी ।
बीच शहर में ओवरटेक कर बरसाई थी गोलियां
वैन भी पीछे भागी और काफी हाउस के आगे खड़ी एक जीप के पास वैन ने जवाहर पंडित की गाड़ी को ओवरटेक किया ।इससे पहले कि जवाहर के साथ बैठा उनका गनर अलर्ट होता। तब तक बदमाशों ने गोलियां बरसानी शुरू कर दी।अंधाधुंध गोलियों की आवाज़ से पूरे सिविल लाइंस इलाके में अफरा तफरी मच गई। जानकारों के अनुसार ये गोलियों डेढ़ मिनट तक चली थी।कहा जाता है कि जिले में पहली बार किसी की हत्या के लिए। एके 47 का इस्तेमाल हुआ था। डेढ़ मिनट के अंदर जवाहर पंडित की हत्या कर दी गई थी।
23 साल दो महीने 18 दिन बाद आया फैसला
जवाहर पंडित की हत्या के बाद पूरे प्रदेश में हड़कंप मच गया। जिले के एसएसपी और एसपी हटा दिए गए।वहीं सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव खुद इलाहाबाद पहुंचे। लेकिन इस मामले में फैसला आने में दो दशक से ज्यादा का समय लगा।और 23 साल दो महीने 18 दिन बाद नामजद किये करवरिया बन्धुओं पर आरोप सिद्ध हुआ।