ख्वाजा साहब के उर्स में पाकिस्तान से हर साल करीब 450 से 500 जायरीन स्पेशल ट्रेन से अजमेर आते हैं। यहां उनके रहने के लिए दरगाह के नजदीक ही सेंट्रल गल्र्स स्कूल में व्यवस्थाएं की जाती है। पाकिस्तानी जत्था जब तक अजमेर रहता है, तब तक उनकी सुरक्षा के लिए विशेष पुलिस बल तैनात किया जाता है और विशेष निगरानी रखी जाती है। इस बार पाक जत्थे के आने की कोई सूचना नहीं है। जबकि उर्स का झंडा चढ़ चुका है और 7 या 8 मार्च से उर्स शुरू हो जाएगा।
पिछले साल भी नहीं आया था पाक जत्था सुरक्षा कारणों अथवा सियासी हालात के चलते कई बार पाक जत्था उर्स में नहीं आ सका है। बीते बीस साल में भारत-पाक के बीच विभिन्न मामलों को लेकर हालात तनावपूर्ण रहे हैं। इनमें करगिल युद्ध, मुंबई आतंकी हमला, पठानकोट और उरी हमला, कश्मीर में आतंकी गतिविधियां सहित अन्य मामले शामिल हैं। इसी वजह से पाक जत्थे को वर्ष 2013, 2014, 2018 व 2019 में वीजा नहीं मिल पाया।
इसलिए बंद कर दी इस्तकबाल की परम्परा
उर्स में यहां आने वाले पाक जत्थे का सेंट्रल गल्र्स स्कूल में शानदार इस्तकबाल किया जाता था। नगर परिषद की ओर से उनके इस्तकबाल में कार्यक्रम आयोजित किया जाता था लेकिन वर्ष 1995-96 में दोनों देशों के बीच उपजे हालातों को देखते हुए नगर परिषद ने यह परम्परा बंद कर दी। उसके बाद से आज तक यह परम्परा बंद है। हालांकि खादिमों की संस्था अंजुमन की और पाक जत्थे के लौटते वक्त दरगाह में इस्तकबाल किया जाता है।
दीवान ने की रोक लगाने की मांग पुलवामा आतंकी हमले के बाद ख्वाजा साहब की दरगाह के दीवान जैनुअल आबेदीन ने उर्स में आने वाले पाक जत्थे पर प्रतिबंध लगाने की मांग उठाई। उन्होंने यहां तक आरोप लगाया कि उर्स में आने वाले पाकिस्तानी जत्थे में आईएसआई के एजेंट भी शामिल होते हैं।
खादिमों ने कहा आने से बेहतर होंगे ताल्लुक उधर खादिमों की संस्था अंजुमन के सचिव वाहिद हुसैन अंगारा शाह का कहना है कि पाकिस्तानी जत्थे के यहां आने से दोनों देशों के ताल्लुकात बेहतर होंगे। उन्होंने कहा कि वहां के लोगों की ख्वाजा साहब की दरगाह में हाजिरी देने की तमन्ना है। कोई अगर सही नियत से यहां आ रहा है तो उसे रोका नहीं जाना चाहिए।