केंद्र और राज्य सरकार, अजमेर विकास प्राधिकरण, नगर निगम के निर्देशों के बावजूद कई सरकारी विभागों में बरसात के पानी का संग्रहण नहीं हो रहा। इनमें महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, मेडिकल, दयानंद कॉलेज, इंजीनियरिंग कॉलेज, सीबीएसई और राज्य एवं केंद्र सरकार के विभिन्न महकमे, निजी स्कूल, अद्र्ध सरकारी विभाग शामिल हैं। जल संरक्षण की सीख देने वाले जलदाय और जल संसाधन विकास के दफ्तर, बिजली विभाग और अन्य कार्यालय भी पीछे हैं।
हर साल शहर में मानसून के दौरान जून से सितम्बर, जनवरी-फरवरी में मावठ के दौरान बरसात होती है। करीब 70 प्रतिशत सरकारी महकमों, निजी प्रतिष्ठानों, शैक्षिक संस्थाओं और घरों में रेन वाटर हार्वेस्टिंग नहीं है। नला बाजार, कचहरी रोड, मदार गेट, महावीर सर्किल, वैशाली नगर, सावित्री स्कूल चौराहा, जयपुर रोड, मार्टिंडल ब्रिज, तोपदड़ा और आगरा गेट में पानी का भराव सर्वाधिक होता है। यह पानी आसपास की पहाडिय़ों, घरों, दुकानों, सरकारी-निजी विभागों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों से बहकर सडक़ों पर पहुंचता है। बाद में यह नालियों-नालों से होकर आनसागर-फायसागर या खेतों-खाली प्लॉटों में भरता है। दुर्भाग्य से इस पानी का कोई इस्तेमाल नहीं होता है।
पर्यावरण विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. प्रवीण माथुर की मानें तो बरसात का पानी बचाया जाए तो कई फायदे हो सकते हैं। जलदाय विभाग प्रतिमाह पेयजल सप्लाई पर बिल भेजता है। घरों, सरकारी-निजी महकमों, स्कूल-कॉलेज, विश्वविद्यालय और अन्य संस्थाओं में औसत बिल 300 से 450 रुपए तक आता है।
गर्मियों में पानी की किल्लत होने पर लोगों को 700 से 1 हजार रुपए देकर टैंकर मंगवाने पड़ते हैं। बरसात के रूप में जिले में करीब 5,550 एमसीएफटी पानी गिरता है। इसमें से महज ढाई हजार एमसीएफटी पानी ही झीलों-तालाबों अथवा भूमिगत टैंक तक पहुंचता है। बाकी व्यर्थ बहने वाली पानी को रेन वाटर हार्वेस्टिंग से बचाया जा सकता है।