अजमेर के मुख्य रेलवे स्टेशन पर लगातार बढ़ती टे्रनों की संख्या और सीमित प्लेटफार्म को देखते हुए लगभग ढाई वर्ष पूर्व मदार और दौराई स्टेशनों को सेटेलाइट स्टेशन के रुप में विकसित करने की योजना बनी। रेलवे प्रशासन का मानना था कि इन दोनों रेलवे स्टेशन को विकसित करने के बाद अजमेर से होकर चलने वाली अनेक रेलगाडिय़ों को मुख्य स्टेशन से हटाकर मदार और दौराई से संचालित किया जा सकेगा। इसके तहत दिल्ली जाने वाले कुछ गाडिय़ों को मदार और अहमदाबाद जाने वाले कुछ ट्रेनों को दौराई स्टेशन से रवाना करने की योजना थी।
महानगरों की तर्ज पर बनाई योजना
दरअसल रेलवे ने महानगरीय रेलवे स्टेशनों से भीड़-भाड़ कम करने के लिए आसपास के अनेक स्टेशन को सेटेलाइट स्टेशन में विकसित करके वहीं से गाडिय़ों का संचालन शुरू कर दिया था। दिल्ली सरायरोहिल्ला, हजरत निजामुद्दीन, बांद्रा टर्मिनस, दादर, सियालदाह सहित अनेक ऐसे स्टेशन है जहां से ट्रेन शुरू होती और वहीं आकर खत्म होती हैं। यह गाडिय़ां इन महानगरों के मुख्य स्टेशन तक नहीं जाती। लेकिन मदार और दौराई स्टेशन के लिए यह योजना तर्कसंगत नहीं हो पार्ई। अंतत: इन स्टेशनों को एक तरह से ट्रेनो की पार्किंग के लिए यार्ड के रूप में उपयोग किया जा रहा है।
दौराई में पार्क होती है शताब्दी
सेटेलाइट स्टेशन के रूप में करोड़ो रुपए खर्च करने के बाद अब मदार और दौराई स्टेशन एक तरह से यार्ड के रूप में काम आ रहे हैं। अजमेर से नई दिल्ली के बीच चलने वाली शताब्दी एक्सप्रेस को अजमेर के एक नंबर प्लेटफार्म से हटाकर अब तीन घंटे के लिए दौराई में पार्क किया जाता है। मदार स्टेशन से भी कोलकात्ता और उदयपुर के लिए ट्रेन रवाना होती हैं। लेकिन यह तीनों गाडिय़ां अजमेर स्टेशन पर आती है और यात्रियों का उतरना और चढऩा मुख्य स्टेशन पर ही होता है।
यातायात के साधन बने समस्या
दरअसल मदार और दौराई स्टेशनों का उपयोग नहीं होने के पीछे यातायात के साधन नहीं होना बड़ा कारण है। दौराई स्टेशन के आसपास न तो बाजार विकसित है और न ही आवासीय कॉलोनियां हैं। सार्वजनिक यातायात के साधन भी नहीं होने से रेल यात्रियों का वहां तक पहुंचना और वापस आना सबसे बड़ी समस्या है। देर रात को इन स्टेशनों पर उतरकर अपने गंतव्य तक जाना सुरक्षा के लिहाज से सही नहीं माना जाता है। मदार स्टेशन तक तो पहुंचना भी खासा मशक्कत का काम है। ऐसे में रेल प्रशासन ने भी मदार और दौराई स्टेशनों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है।
इनका कहना है
रेलवे की ओर से इन दोनों सेटेलाइट स्टेशनों पर पर्याप्त यात्री सुविधाएं दी गई है। लेकिन यात्री रुचि नहीं दिखा रहे हैं। हालत यह है कि इन स्टेशनों पर रोजाना 10-15 टिकट ही बिकते हैं। यातायात सुविधा नहीं होने से भी यहां से ट्रेन संचालन संभव नहीं है। महानगरीय रेलवे स्टेशनों की तर्ज पर सेटेलाइट स्टेशन का यहां उपयोग तर्कसंगत नहीं है। उर्स के दौरान इन स्टेशनों से स्पेशल गाडिय़ों का संचालन किया जाता है लेकिन जायरीन को समस्या का तर्क देकर विरोध प्रकट किया जाता है।
-राजेशकुमार कश्यप, मंडल रेल प्रबंधक