प्रदेश में अजमेर सहित कोटा, उदयपुर, नाथद्वारा, डूंगरपुर, बीकानेर, सीकर, जोधपुर, जयपुर सहित अन्य जिलों में सरकारी संस्कृत कॉलेज हैं। यह कॉलेज पहले स्कूल शिक्षा विभाग के अधीन थे। वर्ष 2012-13 में इन्हें उच्च शिक्षा विभाग के अधीन कर दिया गया। संस्कृत कॉलेज में 1999-2000 तक शिक्षकों की स्थिति ठीक रही। बाद में हालात बिगड़ते चले गए।
पहले यूं चलता था काम… 2004-05 से पहले तक संस्कृत शिक्षा के कॉलेज में शिक्षकों की संख्या पर्याप्त थी। दरअसल सरकारी संस्कृत स्कूल के शिक्षकों को अनुभव और न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के आधार पर कॉलेज में व्याख्याता बनाया जाता था। 2005 में यूजीसी नियम लागू होने के बाद यह सिलसिला बंद हो गया। गुजरे 15 साल में तो संस्कृत कॉलेज बदहाल हो चले हैं।
कई विषयों के शिक्षक नहीं
संस्कृत कॉलेज में अंग्रेजी, हिंदी, इतिहास और अन्य विषयों के अलावा पर्यावरण और कम्प्यूटर विषय पढ़ाए जाते हैं। कुछेक कॉलेज को छोडकऱ अधिकांश में कम्प्यूटर और पर्यावरण विज्ञान विषय पढ़ाने वाले शिक्षक नहीं है। कहीं हिंदी-अंग्रेजी तो कहीं वेद, व्यारकरण, वांग्मय के शिक्षकों को पर्यावरण और कम्प्यूटर विषय पढ़ाने पड़ रहे हैं।
नई भर्तियों का इंतजार अधिकृत सूत्रों की मानें तो संस्कृत शिक्षा कॉलेज में 2005 से नई भर्ती नहीं हुई। मौजूदा वक्त 33 संस्कृत कॉलेज में 80 शिक्षक कार्यरत हैं। ये शिक्षक ही प्रोफेसर, रीडर, लेक्चरर और प्राचार्य का पदभार संभाले हुए हैं। राजस्थान लोक सेवा आयोग और सरकार के स्तर पर विभागीय पदोन्नति भी नहीं हुई है। इसके अलावा मंत्रालयिक और सहायक कर्मचारियों के पद रिक्त हैं।
ये है कॉलेज की परेशानियां… -अजमेर सहित कई कॉलेज में नहीं हैं स्थाई प्राचार्य
-यूजीसी के नियमानुसार विभागवार 1 प्रोफेसर, 2 रीडर और तीन लेक्चरर नहीं -सभी कॉलेज में शिक्षकों के 5 से 10 पद खाली
-मंत्रालयिक और सहायक कर्मचारियों के पद रिक्त
-डीपीसी नहीं होने से अटकी हैं पदोन्नतियां राज्य के संस्कृत कॉलेज में शिक्षकों और सहायक कार्मिकों की संख्या कम है। सीमित स्टाफ से परेशानियां होती हैं। पदोन्नति और नई भर्तियां सरकार से जुड़ी हैं।
डॉ. विनयचंद्र झा, प्राचार्य राजकीय आचार्य संस्कृत कॉलेज