विश्वविद्यालय के पास कायड़ रोड पर करीब 700 बीघा जमीन है। इसके कुछ हिस्सों में शैक्षिक प्रशासनिक भवन, छात्रावास और स्टाफ-टीचर्स क्वाटर बने हैं। जबकि कई हिस्से खाली पड़े हैं। खेल सुविधाओं के मामले में विश्वविद्यालय के हाल खराब हैं। यहां पढऩे वाले अथवा सम्बद्ध कॉलेज के विद्यार्थी क्रिकेट, हॉकी, फुटबॉल जैसे आउटडोर और बैडमिंटन, स्क्वैश, टेबल टेनिस, टेनिस और अन्य इंडोर गेम्स खेलना चाहें तो उन्हें निराशा हाथ लगेगी।
जेब काटो और मौज करो खेल सुविधाओं और खेलों के विकास के लिए विश्वविद्यालय विद्यार्थियों से सौ रुपए खेल शुल्क वसूलता है। लेकिन परिसर में खेल सुविधाओं के विस्तार-विकास नजर नहीं आता। फ्रांस के रॉला गैरां की तर्ज पर निर्मित लाल बजरी का टेनिस कोर्ट बर्बाद हो चुका है। यहां बच्चे और नौजवान अब क्रिकेट खेलते हैं।
कब बनेगा तेंदुलकर स्टेडियम
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री डॉ. रघु शर्मा ने पिछले कांग्रेस राज में वर्ष 2010 में सचिन तेंदुलकर स्टेडियम का शिलान्यास किया था। पिछले नौ साल से एक ईंट भी नहीं लग सकी। विश्वविद्यालय ने राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के तहत 1 करोड़ रुपए का प्रस्ताव भेजा है। लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ है।
यह कैसा हॉकी मैदान विश्वविद्यालय ने हॉकी मैदान के नाम पर युवाओं और शहरवासियों को बड़ी सफाई से धोखा दिया है। स्टाफ कॉलोनी परिसर में टेनिस कोर्ट के पास ही हॉकी मैदान का बोर्ड टांग दिया है। यहां कभी ना किसी को हॉकी खेलते देखा गया। ना ही हॉकी के लिए गोल पोस्ट लगाए गए हैं। विश्वविद्यालय में अध्ययनरत विद्यार्थियों ने भी इस मैदान पर कभी हॉकी नहीं खेली है।
फुटबॉल से मतलब ही नहीं
यूरोप, उत्तरी और दक्षिणी अमरीका, चीन, जापान सहित भारत में फुटबॉल लोकप्रिय है। कई विश्वविद्यालय-कॉलेज ने फुटबॉल को प्रोत्साहन दिया है। महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय को फुटबॉल से कोई मतलब नहीं है। परिसर में कई बीघा जमीन होने के बावजूद फुटबॉल मैदान नहीं है। 31 साल में कुलपतियों अथवा प्रशासनिक अधिकारियों ने भी इसकी तरफ ध्यान नहीं दिया है।कहीं भी खेल लो क्रिकेट
परिसर में हॉकी और फुटबॉल की तरह ही क्रिकेट का बुरा हाल है। अधिकृत रूप से विश्वविद्यालय के पास कोई स्तरीय क्रिकेट ग्राउन्ड और पिच नहीं है। अलबत्ता परिसर में कहीं भी पत्थर लगाकर या तीन विकेट लगाकर क्रिकेट खेला जा सकता है। लाखों रुपए वेतन-भत्ते लेने वाले कार्मिकों, अधिकारियों-शिक्षकों को भी खेल सुविधाओं की लचर स्थिति दिखाई नहीं देती है।
कोच नहीं, कौन तराशे खिलाडिय़ों को
विश्वविद्यालय मेें 20 साल से स्थाई खेल निदेशक और कोच नहीं है। पूर्व में भारतीय खेल प्राधिकरण के कोच यहां सेवाएं देते थे, लेकिन अब यह सिलसिला बंद हो चुका है। एकाध बार अनुबंध पर खेल प्रशिक्षक रखे गए, पर उसका ज्यादा फायदा नहीं मिला। विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कॉलेज का हाल भी ऐसा ही है। 80 प्रतिशत सरकारी और निजी कॉलेज बगैर खेल प्रशिक्षकों के संचालित हैं। सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय जैसे कुछेक कॉलेज को छोडकऱ कहीं शारीरिक शिक्षा विभाग नहीं नहीं है।