इसके चलते वर्ष 1975 में बाढ़ से काफी तबाही हुई। तब कई मकान गिर गए। खेत जलमग्न होने से फसलें खराब हो गई। घरों में कई दिनों तक पानी भरा रहा। खेत बंजर हो गए। लोगों का मानना है कि यही बाढ़ का पानी मदारपुरा तालाब में एकत्र होता तो नुकसान रोका जा सकता था।
इस पानी का उपयोग मदारपुरा तालाब से सीधे निम्बार्क बांध परियोजना सलेमाबाद तक होता। तब नहरों में पानी छोड़ा जाता तो फसल सिंचाई होती। भू-जल स्तर भी सुधरता। चालीस साल से मदार तालाब, रसूलपुरा, ऊंटड़ा समेत निम्बार्क बांध रीते पड़े हैं। वर्ष 1995 में जिला परिषद के निर्दलीय सदस्य श्रवण सिंह रावत के प्रयासों से स्थिति में बदलाव आया।
वार्ड नं. 28 में आम का तालाब क्षेत्र शामिल किया गया। तब रावत ने तत्कालीन कलक्टर अदिति मेहता से आग्रह कर सर्वे कराया तो सिंचाई विभाग ने इसे फेल कर दिया। रावत ने तब के अधिशासी अधिकारी सीताराम सैनी को हकीकत बताई तो सैनी ने रुचि लेकर पानी को कल्याणीपुरा तालाब की बजाए मदारपुरा तालाब में घुमा दिया।
इस तालाब में पहले चादर नहीं थी। इसके चलते वर्ष 1975 में तालाब टूट गया। बाद में चादर का निर्माण कराया गया। इसका ओवरफ्लो पानी रसूलपुरा तालाब में जाता था। कंधे पर बंदूक
मदार तालाब की जमीन खातेदारी की है। इसकी सपाट जमीन पर फसल पैदावार की जा सकती है, लेकिन मकानों के लिए भूखंड नहीं काटे जा सकते। भूमाफिया ने चालाकी बरत कर खातेदारों से पावर ऑफ अटार्नी ले ली। रजिस्ट्री कराते समय खातेदार के ही हस्ताक्षर होते हैं।
कानूनी कार्रवाई होने पर भूमाफिया सीधे बचते रहे। तालाब की जमीन पर भूखंड बेच दिए गए। पक्की सड़कें बना दी गई। इस गोरखधंधे का विरोध किया तो आरोपितों में खलबली मच गई। दो साल से फिलहाल तालाब की जमीन बची हुई है। आधे हिस्से में पानी की आवक है तो शेष भाग पर भू-माफियाओं के कब्जे हैं। सिंचाई विभाग अभी मदारपुरा नहर का निर्माण करा रहा है।
छलछलाने को तरसे तालाब वर्ष 1975 में अतिवृष्टि के चलते रसूलपुरा और मदारपुरा तालाब टूट गए थे। बाद में इनकी मरम्मत भी कराई गई, लेकिन इसके बाद से तालाब कभी पूरे नहीं भर पाए। दोनों तालाबों के चैनल गेट खोलने के बाद करीब दो हजार बीघा जमीन पर फसल सिंचाई होती थी।
दो दशक से इस क्षेत्र की खेती मानसून पर निर्भर हो गई है। भूजल स्तर भी ऊपर रहता था। अब हालात विकट हो गए हैं। जमीन का पानी रसातल में चला गया। फ्लोराइड पानी की मात्रा काफी बढ़ गई है। पांच सौ से अधिक गहराई पर ट्यूबवैल में पानी आ रहा है। कई बार नीचे चट्टानें आने से खुदाई बेकार चली जाती है।
रूपन नदी का इतिहास पांच दशक पुराना है। मदार तालाब में यदि पानी एकत्र होता है तो इसके नतीजे अच्छे निकलेंगे। इस तालाब की चादर चलने पर रसूलपुरा, ऊंटड़ा सहित अन्य तालाबों में स्वत: पानी पहुंचेगा। मदार पहाड़ी का पानी क्षेत्र के लोगों के लिए भागीरथी से कम नहीं है।
मदार तालाब का रूप परिवर्तित नहीं होना चाहिए। तभी जाकर रूपन नदी का अस्तित्व बचाया जा सकता है। यह सब जिला कलक्टर, अजमेर पर निर्भर है।श्रवण सिंह रावत, पूर्व सदस्य जिला परिषद