कई कुंभकार गांवों की मिट्टी से गणेश प्रतिमा बनाकर रंग-रोगन कर बेच रहे हैं। इससे पहले कुंभकार सालभर तक मटकी, दीपक, सिकोरा, धुपेड़ा, गुल्लक सहित बरतन इत्यादि बनाए जा रहे थे। अब ईको फ्रैण्डली गणेश की तरफ लोगों का रुख बढऩे से कुंभकारों ने भी मिट्टी की प्रतिमाएं बनाना शुरू कर दिया है।
मिट्टी पर भी महंगाई की मार समय के बदलते दौर में मिट्टी पर भी महंगाई की मार आ गई है। 30 साल से काम कर रहे कुंभकार गोपाल ने बताया कि 10 साल पहले तक 80 रुपए में एक बैलगाड़ी मिट्टी आ जाती थी। अब बैलगाडिय़ां तो बंद हो गई हैं। अब एक ट्रेक्टर मिट्टी के 2500 रुपए तक देने पड़ जाते हैं।
5 घंटे में एक प्रतिमा तैयार मिट्टी से गणेश प्रतिमाओं को तैयार करने में काफी मेहनत लगती है। करीब 3-4 फीट तक बड़ी प्रतिमा बनाने में 5 घंटे का समय लग जाता है। सूखने के बाद रंग-रोगन किया जाता है।
पीओपी से पर्यावरण को नुकसान कुंभकार मुरलीधर प्रजापत ने बताया कि वह पिछले 12 साल से मिट्टी के बर्तन बना रहा हैं। पिछले साल अनंत चतुर्दशी पर विसर्जन के समय तालाबों की स्थिति देखी तो बड़ा अजीब लगा। पीओपी से बनी गणेश प्रतिमाएं तालाबों के पानी को प्रदूषित करती हैं और पानी के जीव-जंतु भी मर जाते हैं।
इसी से सबक लेते हुए पिछले साल 5-10 प्रतिमाएं बनाईं। लोगों का अच्छा रुझान देखते हुए इस बार उन्होंने 100 से ज्यादा प्रतिमाएं तैयार की हैं। यह प्रतिमाएं 501 से 1100 रुपए तक हैं। मिट्टी की प्रतिमा पानी में विसर्जित करने पर पानी प्रदूषित नहीं होता और पानी में रहने वाले जीव-जंतु भी नहीं मरते।