दरगाह दीवान ने कहा कि वर्तमान परिवेश में दो संप्रदायों के बीच अविश्वास की भावना इस तरह उत्पन्न हो रही है कि दाढ़ी रखने वाला, नमाज़ पढऩे वाला, टोपी पहनने वाला मुसलमान अपने-आप अयोग्य घोषित हो जाता है जो अपने धर्म के कोई लक्षण ज़ाहिर न होने दे। दूसरी तरफ भजन, कीर्तन, तीर्थयात्रा, धार्मिक जयकारे और तिलक आदि लगाने को देशभक्ति का लक्षण बनाया जा रहा है यानी जो ऐसा नहीं करेगा वो देशभक्त नहीं होगा, ज़ाहिर है मुसलमान अपने-आप किनारे रह जाएंगे। उन्होंने कहा कि इस अविश्वास की बुनियादी वजह प्रायोजित राष्ट्रवाद और उसको हवा देने लगता है।
दीवान ने कहा कि यह ऐसा वक्त है जब सरकार का सारा ध्यान सिफऱ् मुसलमानों में सामाजिक सुधार लाने पर है। तीन तलाक़, हज सब्सिडी और हलाला आदि विषयों पर जिस जोश से चर्चा हो रही है, उससे मुसलमानों पर एक दबाव बना है। वे इस देश में कैसे रहेंगे इसका फ़ैसला बहुसंख्यक हिंदू करेंगे ऐसा कथित विश्वास अल्पसंख्यकों में घर कर गया है जिसे बहुसंख्यक वर्ग को रचनात्मक रूप से दूर करने के लिए आगे आना होगा। इसी से परस्पर विश्वास की भावना कायम होगी।