यहां दो-तीन साल से लॉ कॉलेज के पूर्व प्राचार्य डॉ. आर. एस. अग्रवाल कक्षाएं ले रहे हैं। एलएलएम के अन्य विषय पढ़ाने के लिए यदा-कदा वकील या सेवानिवृत्त शिक्षक आते हैं। एलएलएम पाठ्यक्रम की बदहाली से बार कौंसिल ऑफ इंडिया भी चिंतित नहीं दिख रही। जबकि उसके नियम पार्ट-चतुर्थ, भाग-16 में साफ कहा गया है, कि विश्वविद्यालय और कॉलेज को एलएलएम कोर्स के लिए स्थाई प्राचार्य, विषयवार शिक्षक और संसाधन जुटाने जरूरी हेांगे।
राष्ट्रभाषा हिंदी भी बदहाल है। यहां 27 साल तक तो हिंदी का विभाग ही नहीं था। राजस्थान पत्रिका ने मुद्दा उठाया तो राज्यपाल कल्याण सिंह ने संज्ञान लेकर हिंदी विभाग खुलवाया। दो साल से मातृभाषा हिंदी विभाग भी उधार के शिक्षक के भरोसे संचालित है। विभाग में कोई स्थाई प्रोफेसर, रीडर अथवा लेक्चरर नहीं है। ऐसा तब है जबकि देश-विदेश में हिंदी की लोकप्रियता बढ़ रही है।
विश्वविद्यालय में कई शैक्षिक विभाग नहीं हैं। इनमें अंग्रेजी, गणित, फिजिक्स, ड्राइंग एन्ड पेंटिंग, संगीत, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र, राजस्थान स्टडीज, गांधी अध्ययन और अन्य विभाग नहीं हैं। जबकि इन विषयों-विभागों में विद्यार्थियों की प्रवेश लेने में खासी रुचि रहती है। देश के कई विश्वविद्यालयों में यह विभाग संचालित हैं।