देग की कढ़ाह का खासीयत यह है कि देग पकाते वक्त इसका ऊपरी हिस्सा गरम नहीं होता। पकती देग के दौरान इन पर हाथ रखा जा सकता है। यह सामग्री डाली जाती है बड़ी देग में
चावल . 10 क्विंटल, चीनी 10 क्विंटल, घी 1 क्विंटल, मेवा 1 क्विंटल, जाफरान 2 पैकेट, हल्दी 20 किलो, आटा गेहूं 20 किलो, आटा उड़द 20 किलो, मैदा 15 किलो, केवड़ा 20 किलो, गुड 4 किलो, मैथी का आटा 3 किलो, अर्क गुलाब 20 किलो आदि।
ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में बड़ी देग मुगल बादशाह अकबर ने और छोटी देग बादशाह जहांगीर ने पेश की थी। खादिम सैयद गनी गुर्देजी ने बताया कि बादशाह अकबर बेटे सलीम की पैदाइश पर आगरा से अजमेर तक पैदल चल कर आए और यहां दरगाह में देग पकवा कर मन्नत उतारी थी। इसी तरह यहां आने वाले जायरीन अपनी मन्नत पूरी होने पर यहां श्रद्धानुसार छोटी या बड़ी देग पकवाते हैं। इसमें पकाए जाने वाला प्रसाद जायरीन में वितरित किया जाता है। गनी गुर्देजी ने बताया कि उनके बुजुर्ग दानियाल गुर्देजी ने बादशाह अकबर को जियारत कराई थी।
देग पकवाने के लिए जायरीन महीनों पहले बुकिंग करवा लेते हैं। अंजुमन सचिव वाहिद हुसैन अंगारा शाह के अनुसार छोटी देग पर लगभग 50 से 1 लाख रुपए और बड़ी देग पर करीब 1 लाख 20 हजार से 2 लाख रुपए तक खर्च होते हैं। बड़ी देग केवल रात के समय ही पकाई जाती है। छोटी देग कभी कभी सुबह के समय भी पकाई जा सकती है। इसके अलावा इनमें दिनभर नजराना चढ़ाया जाता है। इनमें नकदी व आभुषण के अलावा चावल के कट्टे भी शामिल होते हैं। उर्स के दौरान रात के समय केवल छोटी देग की पकाई जाती है। बड़ी देग की बुकिंग बंद रहती है।