Gramin Nyayalaya: ग्रामीण न्यायालयों के बिना कैसे बदलेगा देश का कानूनी परिदृश्य
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Gramin Nyayalaya: ग्रामीण न्यायालयों के बिना कैसे बदलेगा देश का कानूनी परिदृश्य
उदय पटेल
अहमदाबाद. हाल ही गुजरात में संपन्न दो दिवसीय राष्ट्रीय न्यायिक कॉन्फ्रेंस में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एन. वी. रमन्ना ने कहा कि वैकल्पिक विवाद निवारण (एडीआर) के तहत लोक अदालत, ग्राम न्यायालय, मध्यस्थता केंद्र भारत के कानूनी परिदृश्य को बदल सकते हंै। हालांकि देश के ग्रामीण न्यायालयों की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं दिखती है। अभी देश में सिर्फ १० राज्यों में २५८ न्यायालय कार्यरत हैं। जबकि १५ राज्यों में अब तक ४७६ ग्राम न्यायालय अधिसूचित हैं। अधिकांश राज्यों ने इसे स्थापित नहीं किया है। १२वीं पंचवर्षीय योजना में देश भर में ऐसे २५०० ग्राम न्यायालयों को स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया था।
नागरिकों की उनकी दहलीज पर न्याय तक पहुंच प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार ने ग्राम न्यायालय अधिनियम २००८ पारित किया जिसके तहत राज्यों को अपने यहां ग्रामीण न्यायालय गठित करने थे। २ अक्टूबर २००९ को कानून लागू किया गया लेकिन फिर भी अधिकांश राज्यों में इसे स्थापित नहीं किया है।
५ प्रदेशों में अधिसूचित, नहीं हुए शुरू
विधि विभाग के डैश बोर्ड के मुताबिक सबसे ज्यादा ८९ ग्राम न्यायालय मध्य प्रदेश में हैं। इसके बाद राजस्थान में ४५, केरल में ३०, कर्नाटक और हरियाणा में २-२ ग्राम न्यायालय कार्यरत हैं। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा ११३ ग्राम न्यायालय अधिसूचित हैं लेकिन इनमें अभी ४५ कार्यरत हैं। उधर गोवा में २, आंध्र प्रदेश में ४२, तेलंगाना में ५५, जम्मू कश्मीर में २० और लद्दाख में २ अधिसूचित ग्राम न्यायालय में से एक भी कार्यरत नहीं हुए।
राज्य सरकार उत्तरदायी, केंद्र की कोई भूमिका नहीं
राज्य सरकारें संबंधित उच्च न्यायालयों के परामर्श से ग्राम न्यायालयों की स्थापना कर सकते हैं। पंचायत स्तर पर इन न्यायालयों में प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट न्यायिक अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं, जो दीवानी और फौजदारी दोनों के सामान्य मामलों (अधिकतम सजा २ वर्ष) की सुनवाई करते हैं। ग्राम न्यायालय के फैसलों को संबंंधित जिला या सत्र न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। इस व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को न्याय उपलब्ध कराना है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष २०२० में ग्रामीण न्यायालय की स्थापना से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई के दौरान असंतोष व्यक्त किया था और साथ ही देश के सभी राज्यों व केन्द्रशासित प्रदेशों से ग्रामीण न्यायालय स्थापित करने के लिए अधिसूचना जारी करने को कहा था। वर्ष १९८६ में विधि आयोग ने ग्राम न्यायालयों की स्थापना की सिफारिश की थी।
अवधि २०२६ तक बढ़ाई
नीति आयोग ने इसकी समीक्षा करते हुए इन ग्रामीण न्यायालयों की अवधि को २०२६ तक बढ़ा दिया है। इन २५८ ग्राम न्यायालयों ने दिसम्बर २०२० से फरवरी २०२२ तक के १५ महीनों में ४३९१४ मामलों का निपटारा किया।
देश में ग्रामीण न्यायालय की स्थिति
राज्य ग्रामीण न्यायालय
मध्य प्रदेश ८९
राजस्थान ४५
उत्तर प्रदेश ४५
केरल ३०
महाराष्ट्र २३
ओडिशा १९
कर्नाटक २
पंजाब २
हरियाणा २
झारखंड १
ग्रामीण न्यायालय की अवधारणा बेहतर
लोगों को दरवाजे के निकट न्याय दिलाने के लिए ग्रामीण न्यायालय की अवधारणा बहुत ही बेहतर है। न्याय राशन की तरह जरूर है। जिस तरह हवा, पानी की जरूरत होती है उस तरह न्याय की भी जरूरत होती है। गांवों में दो समूहों के बीच संघर्ष सहित अन्य कई मामलों में त्वरित निपटारा मिल सकता है।
– डॉ ज्योत्सनाबेन याज्ञिक, पूर्व प्रधान न्यायाधीश, शहर सिविल व सत्र न्यायालय, अहमदाबाद
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