इस कोलाज में आप सभी तीन तस्वीर देख रहे हैं। और बहुत कुछ आप खुद ही समझ गए होंगे। दूसरी तस्वीर में एक लड़की को आप काले घेरे में देख रहे हैं।करीब एक साल पहले पश्चिमपुरी चौराहा (सिकंदरा, आगरा) पर भीख मांगते देखा। मेरे पास भी भीख मांगने आई। मैंने लड़की से पढ़ने के लिए बोला। फिर उसकी मम्मी से मिलकर बात की। लड़की फिर पढ़ने के लिए आने लगी। तीसरी तस्वीर में वही लड़की (रंजना) एक साल पढ़ने के बाद आप देख रहे होंगे। देखिए कितना चेंज आया उसके जीवन में। बच्चों के हाथों में कलम होनी चाहिए न कि भीख का कटोरा। रंजना कम्पटीशन में पार्टिसिपेट भी करती है। इस बदलाव को देखकर मेरे दिल में बहुत संतुष्टि रहती है।
पहली तस्वीर में वही लड़की (रंजना) की मां कल मुझसे मिलने आई और हाथ जोड़कर कहने लगी कि मेरे तीन और बच्चे पढ़ा दीजिये। मुझे खुशी हुई कि एक ऐसी मां जो बच्चों को भीख मांगते हुए देखती थी, आज उसकी इच्छा है कि उसकी बड़ी लड़की रंजना की तरह उसके और तीनों बच्चे भी पढ़ें।
मुझे खुशी होगी कि आप सभी का सहयोग मिले ऐसे बच्चों को शिक्षित करने के लिए। बच्चों की ड्रेस में, बुक्स में, बैग में, शूज में आपके द्वारा छोटी-छोटी कुछ भी हेल्प मिलेगी तो मेरा उत्साह और बढ़ जाता है। अपने शहर के बच्चे पढेंगे, शहर पूर्ण साक्षरता की तरफ बढ़ेगा। आप सभी की दुआएँ इन बच्चों के साथ हैं। पत्रिका डॉट कॉम, राजस्थान पत्रिका के माध्यम से मैं अपने शहवासियों से अपील करती हूं कि भीख मांगने वाले बच्चों की शिक्षा में सहयोग करें।
(डॉ. हृदेश चौधरी आराधना संस्था की महासचिव और जाट क्षत्राणी सभा की अध्यक्ष भी हैं।)