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आरक्षण के विरोध में भीषण हिंसा, चली गोलियां, 100 छात्रों समेत 15 पुलिस कर्मी गंभीर घायल

Violence over Quota System: हिंसा में अब तक 100 से भी ज्यादा छात्र गंभीर रूप से घायल हुए हैं तो वहीं 15 पुलिस अधिकारियों को भी गंभीर चोटें आई हैं। प्रदर्शनकारियों ने सत्तारूढ़ पार्टी की स्टूडेंट विंग पर हमले का आरोप लगाया है।

नई दिल्लीJul 16, 2024 / 04:06 pm

Jyoti Sharma

Violence over Quota System in job reservation 100 Student injured in Bangladesh

Violence over Quota System in job reservation

Violence over Quota System: आरक्षण को लेकर भारत में रह-रह कर सियासत तो भड़कती ही है साथ ही आम लोगों के अंदर की नाराजगी की भड़का देती है, जो हिंसा में बदलकर सियासत के सिस्टम पर सवाल खड़ा करती है। ऐसा ही कुछ हुआ है बांग्लादेश में,..जहां आरक्षण को लेकर जबरदस्त हिंसा हो रही है। बीते सोमवार को भड़की हिंसा में अब तक 100 से भी ज्यादा छात्र गंभीर रूप से घायल हुए हैं तो वहीं 15 पुलिस अधिकारियों को भी गंभीर चोटें आई हैं। जिनका इलाज किया जा रहा है। आरक्षण विरोधी छात्रों ने प्रधानमंत्री शेख हसीना की स्टूडेंट विंग पर हमला करने का आरोप लगाया है।
ये मामला राजधानी ढाका के पास सावर में जहांगीर नगर विश्वविद्यालय का है। यहां पर छात्र संगठन और छात्र प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प हो गई। रात भर जारी इस हिंसा को कंट्रोल करने के लिए पुलिन ने लाठियां बरसाई और आंसू गैस तक छोड़ी। जिसमें दर्जनों लोग घायल हो गए। 

क्यों हो रहा विरोध 

दरअसल ये छात्र 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी के लिए लड़े गए संग्राम में लड़ने वाले नायकों के परिवार के सदस्यों के लिए सरकारी नौकरी का कोटा खत्म करने की मांग कर रहे हैं। इस कोटा में महिलाओं, दिव्यांगों और जातीय अल्पसंख्यक समूहों के लिए सरकारी नौकरियां भी आरक्षित है। साथ ही बांग्लादेश के 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के परिवार के सदस्यों को भी नौकरी दी जाती है। साल 2018 में इस सिस्टम को निलंबित कर दिया गया था जिससे उस समय इसी तरह के विरोध प्रदर्शन रुक गए थे। लेकिन पिछले महीने बांग्लादेश के उच्च न्यायालय ने एक फैसला दिया था जिसके मुताबिक 1971 के दिग्गजों के आश्रितों के लिए 30% कोटा बहाल करना था। 
प्रदर्शनकारी छात्र इस कोटा के तहत महिलाओं, दिव्यांगों और जातीय अल्पसंख्यकों के लिए 6% कोटा का तो समर्थन कर रहे हैं लेकिन वो ये नहीं चाहते कि इसका लाभ 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दिग्गजों के परिवार के सदस्यों को मिले। इसलिए इस फैसले का विरोध शुरू हो गया जो अब भीषण हिंसा में बदल चुका है। 

सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक

हिंसा को देखते हुए ये मामला बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा। जहां कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले पर चार सप्ताह के लिए रोक लगा दी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो इस मुद्दे पर 4 हफ्ते के बाद फैसला करेगा और प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि मामला अब सुप्रीम कोर्ट के हाथ में है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद लोगों का आक्रोश थमा नहीं और उस दिन से लगातार आरक्षण को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी है। जिससे राजधानी ढाका में यातायात बाधित हो रहा है और हिंसक झड़प का भी लोगों को सामना करना पड़ रहा है। 

30 लोगों को लगी गोली

ढाका के जिस अस्पताल में घायलों का इलाज जारी है वहां के चिकित्सा अधिकारी अली बिन सोलेमान ने स्थानीय मीडिया को बताया कि जहांगीर नगर विश्वविद्यालय के पास एनाम मेडिकल कॉलेज अस्पताल में रात भर 50 से ज्यादा लोगों का इलाज किया गया उन्होंने कहा कि उनमें से कम से कम 30 लोगों को गोली लगी है। 

पुलिस ने कहा बिना बुलेट की खाली गोलियां चलाईं

वहीं ढाका के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अब्दुल्लाहिल काफ़ी ने देश के प्रमुख अखबार डेली स्टार को बताया कि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर हमला किया तो उन्होंने आंसू गैस और बिना बुलेट की खाली गोलियां चलाईं। छात्रों ने पुलिस के साथ भी मारपीट की जिसमें 15 पुलिस अधिकारी घायल हुए हैं। पुलिस ने कहा कि सोमवार को ढाका में हुई झड़पों में 100 से अधिक छात्र घायल हो गए।

पीएम शेख हसीना की स्टूडेंट विंग पर हमले का आरोप

इधर प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना की सत्तारूढ़ अवामी लीग पार्टी की छात्र शाखा, बांग्लादेश छात्र लीग पर उनके शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन पर हमला करने का आरोप लगाया। प्रदर्शनकारियों ने मंगलवार तड़के विश्वविद्यालय के कुलपति के आधिकारिक आवास के सामने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि इस घटना के बाद यहां हिंसा फैल गई क्योंकि पुलिस और सत्तारूढ़ पार्टी समर्थित छात्र विंग ने उन पर हमला किया।

भारत की मदद से लड़ी गई बांग्लादेश की आजादी की लडा़ई

बता दें कि प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी 1971 के युद्ध नायकों के परिवारों के लिए कोटा रखने के पक्ष में है क्योंकि उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में ही भारत की मदद से स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया था। 
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