क्या है पाताल का रास्ता
दरअसल हिंद महासागर (India Ocean) में सन् 1948 को भारत के दक्षिण-पश्चिम में 1200 किमी की दूरी पर इस क्षेत्र की खोज हुई। ये समुद्री गड्ढा 31 लाख वर्ग किमी कए एरिया में फैला हुआ है। यहां पर दूसरी जगह के समुद्र के मुकाबले पानी का स्तर 348 फीट कम है। ये गड्ढा ऐसा था कि समंदर का पानी इसके भीतर जाता हुआ नजर आता है, लेकिन नीचे पानी कहां जा रहा है इसका पता नहीं चला, ये गड्ढा कब और कैसे बना इस सवाल के जवाब में वैज्ञानिकों में भी मतभेद हुए। इसके बाद कई वैज्ञानिकों ने इस गड्ढे को एक ‘ग्रैविटी होल’ का नाम दिया। यानी वो जगह जहां गुरुत्वाकर्षण बल इतना कमजोर है कि पानी का स्तर दूसरे इलाकों के मुकाबले काफी नीचे चला गया है। तो वहीं मान्यताओं के मुताबिक इसे ‘पाताल का रास्ता’ (Patal Ka Rasta) कहा जाता है। अब वैज्ञानिकों ने इस रहस्य पर जो शोध किया है उसमें ये पता चला है कि हिंद महासागर में ‘ग्रैविटी होल’ के पीछे की सच्चाई वैज्ञानिक है और ये पृथ्वी की भूगर्भीय गतिविधियों से संबंधित है। इसे ‘पाताल का रास्ता’ केवल सांस्कृतिक और पौराणिक दृष्टिकोण से कहा जाता है। ये विज्ञान और मिथक का सुंदर संगम है, जो प्रकृति की जटिलता और मानव कल्पना दोनों को दर्शाता है।
क्या है इसकी सच्चाई?
साल 2023 में जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स पत्रिता में इसे लेकर एक रिसर्च पब्लिश हुई थी। जिसमें वैज्ञानिकों ने इस पाताल के रास्ते का रहस्य सुलझाने का दावा किया था। इस रिपोर्ट के मुताबिक ये क्षेत्र एक समंदर की मौत के बाद बना। इस समुद्र का नाम टेथीज सागर (Tethys Sea) था।
क्या था टेथीज सागर
टेथीज सागर (Tethys Sea) एक प्राचीन महासागर था जो आज से करोड़ों साल पहले पृथ्वी की भूगर्भीय संरचना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। इसका अस्तित्व ‘मेसोज़ोइक युग’ (लगभग 250 से 66 मिलियन साल पहले) (डायनासोर वाला युग) के दौरान था। ये समुद्र आज के हिंद महासागर, भूमध्यसागर, और अन्य समुद्रों के निर्माण में योगदान करने वाली भूगर्भीय गतिविधियों का केंद्र था। टेथीज सागर का नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं की देवी “Tethys” से लिया गया है, जो महासागरों की प्रतीक मानी जाती थीं। ये सागर पैंजिया (Pangaea) महाद्वीप के टूटने के दौरान बना। पैंजिया धरती पर एक विशाल महाद्वीपीय भूभाग था, जो बाद में दो हिस्सों में टूट गया- लॉरेशिया और गोंडवाना। लॉरेशिया उत्तरी भाग है जिसमें अमेरिका और यूरोप शामिल हैं। वहीं गोंडवाना दक्षिणी भाग है जिसमें भारत, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, अंटार्कटिका और ऑस्ट्रेलिया शामिल थे। टेथीज सागर इन दो भागों के बीच स्थित था। यह समुद्र दक्षिण में गोंडवाना और उत्तर में लॉरेशिया के बीच फैला हुआ था।
कैसे हुई टेथीज सागर की ‘मौत’
टेथीज सागर गोंडवाना के टूटने के दौरान यूरेशियन प्लेट के नीचे दब गया। जिससे धरती की ऊपरी परत (क्रस्ट) के टुकड़े मेंटल (क्रस्ट के नीचे की परत) के नीचे डूब गए। यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेट की तरफ लगातार खिसकने के चलते टेथीज सागर का जो समुद्री तल था वो मेंटल के नीचे आ गया। इस तरह टेथीज सागर के ऊपर हिंद महासागर का कब्जा होता चला गया। रिसर्च के मुताबिक इस सागर का मैग्मा पिघल रहा है, जिससे इस पूरे क्षेत्र का द्रव्यमान भी कम हो गया और ग्रैविटी कमजोर हो गई। इसलिए महासागर में इस जगह पानी नीचे चलता चला गया और एक विशालकाय गड्ढे का निर्माण हो गया। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारतीय प्लेट गोंडवाना से टूटकर उत्तर की ओर बढ़ी और यूरेशियन प्लेट से टकराई। इस टक्कर ने टेथीज सागर को और ज्यादा संकुचित कर दिया और सागर के तलछटों के दबने से हिमालय पर्वत (Himalayas) का निर्माण हुआ। सिर्फ इतना ही नहीं टेथीज सागर के तल में जमा तलछट और कार्बनिक पदार्थ आज के पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस भंडार के स्रोत हैं। खास तौर से मध्य एशिया और मध्य पूर्व (मिडिल ईस्ट) में तेल और गैस भंडार का संबंध टेथीज सागर से है।