चर्च के अधिकारियों के मुताबिक, संत घोषित करने की प्रक्रिया पूरी होने के साथ पिल्लई ईसाई संत बनने वाले भारत के पहले आम व्यक्ति बन जाएंगे। उन्होंने 1745 में ईसाई धर्म अपनाने के बाद ‘लेजारूस’ नाम रख लिया था। ‘लेजारूस’ का अर्थ ‘देवसहायम’ या ‘देवों की सहायता’ है।
-
वेटिकन की ओर से कहा गया है कि धर्म का प्रचार करते समय पिल्लई ने जातिगत मतभेदों के बावजूद सभी लोगों की समानता पर जोर दिया। इससे उच्च वर्गों के खिलाफ आक्रोश पैदा हुआ और उन्हें 1749 में गिरफ्तार कर लिया गया। बढ़ती कठिनाइयों को सहने के बाद जब उन्हें 14 जनवरी 1752 को गोली मार दी गई तो उन्हें शहीद का दर्जा मिला।
पिल्लई को उनके जन्म के 300 साल बाद दो दिसंबर 2012 को कोट्टार में धन्य घोषित किया गया था। उनका जन्म 23 अप्रैल 1712 को कन्याकुमारी जिले के नट्टलम में एक हिंदू नायर परिवार में हुआ था, जो तत्कालीन त्रावणकोर साम्राज्य का हिस्सा था।
-
ईसाई धर्म में किसी भी व्यक्ति को संत घोषित करने की प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी होती है। पहले चरण में संबंधित व्यक्ति के अनुयायी स्थानीय बिशप के सामने उस शख्स की महानताओं और चमत्कारों को साबित करते हैं। फिर चर्च की ओर से चुने गए पॉस्चुलेटर के जरिये उस व्यक्ति के चमत्कारों के सबूतों और जानकारियों के आधार पर एक पत्र तैयार किया जाता है जिसके आधार पर पोप उस व्यक्ति को पूज्य की उपाधि देते हैं।
दूसरे चरण में पोप उसे धन्य घोषित करते हैं। आखिरी चरण में रोमन कैथोलिक चर्च के प्रमुख पोप द्वारा महान व्यक्ति को संत की उपाधि दी जाती है। संत घोषित करने की प्रक्रिया को कैनोनाइजेशन कहते हैं।