रोज क्रूर हत्याएं और बम विस्फोट की घटनाओं से सभी दहशत में हैं। इस बीच, अमरीका और ब्रिटेन ने सोमवार को अपने नागरिकों को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के होटलों से दूर रहने की चेतावनी दी। इसमें खास तौर से वहां के मशहूर सेरेना होटल को लेकर विशेष सतर्कता बरतने को कहा गया है।
-
अमरीका के विदेश मंत्रालय ने क्षेत्र में सुरक्षा खतरों का हवाला देते हुए कहा, अमेरिकी नागरिक, जो सेरेना होटल में या उसके आसपास हैं, उन्हें तुरंत उस जगह को छोड़ देना चाहिए। ब्रिटेन के विदेश विभाग ने अफगानिस्तान की यात्रा नहीं करने अपनी सलाह के अपडेट में कहा, बढ़ते हुए जोखिम को देखते हुए आपको नागरिकों को होटलों से दूर रहने की सलाह दी जाती है।
सेरेना होटल काबुल का सबसे मशहूर लक्जरी होटल है, जो आठ सप्ताह पहले तालिबान के काबुल में कब्जे से पूर्व विदेशियों की पहली पसंद हुआ करता था। यह दो बार चरमपंथी हमलों का निशाना रहा है।
माना जा रहा है कि तालिबानी नेता बरादार अब काबुल पैलेस में रह रहा है, जबकि उसके समर्थक और मुल्ला उमर का बेटा रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब अभी भी कंधार में है। सिराजुद्दीन हक्कानी अभी भी काबुल में रहता है। तालिबान के सह-संस्थापक, मुल्ला बरादर के आने से सरकार के भीतर तनाव बढ़ेगा क्योंकि याकूब गुट आईएसआई समर्थित हक्कानी गुट का मजबूत प्रतिद्वंद्वी है। यही स्थिति तालिबान के अफगान विरोध के साथ भी है, जिसमें प्रत्येक नेता अपना वर्चस्व चाहता है और किसी के साथ काम करने को तैयार नहीं है।
-
बता दें कि सितंबर महीने के मध्य में अफगान नेशनल टीवी के साथ एक साक्षात्कार में मुल्ला बरादर ने इन खबरों को अफवाह बताकर इसका खंडन किया था कि वह पिछले हफ्ते काबुल में राष्ट्रपति भवन में एक विवाद में घायल हो गया था या मारा गया था। मीडिया में आई इन खबरों को लेकर पूछे जाने पर बरादर ने कहा था, ‘नहीं, यह बिल्कुल भी सच नहीं है। अल्लाह का शुक्र है कि मैं फिट और स्वस्थ हूं। और मीडिया के दावे में कोई सच्चाई नहीं है कि हमारे बीचे आतंरिक असहमति है या फिर आंतरिक रार है।’
दरअसल, तालिबान और हक्कानी के बीच वर्चस्व को लेकर काबुल पर कब्जे के बाद से लड़ाई जारी है। तालिबान की राजनीतिक ईकाई की ओर से सरकार में हक्कानी नेटवर्क को प्रमुखता दिए जाने का विरोध किया जा रहा है। वहीं हक्कानी नेटवर्क खुद को तालिबान की सबसे फाइटर यूनिट मानता है। बरादर के धड़े का मानना है कि उनकी कूटनीति के कारण तालिबान को अफगानिस्तान में सत्ता मिली है, जबकि हक्कानी नेटवर्क के लोगों को लगता है कि अफगानिस्तान में जीत लड़ाई के दम पर मिली है।