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वर्क एंड लाईफ

स्वयं सहायता समूह से आत्मनिर्भर होती महिलाएं

पशुपालन सीखकर कर रही हैं अच्छी कमाई

Mar 21, 2018 / 05:09 pm

सुनील शर्मा

bakri palan

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– उषा राय

महिलाएं पशुपालन से किस तरह आत्मनिर्भर बन सकती हैं। इसका उदाहरण बिहार में देखा जा सकता जहां की कई महिलाएं पशु सखी और बकरी दीदी के नाम से भी प्रसिद्ध हैं। जो बकरी पालन के द्वारा अपने जीवन स्तर में सुधार ला रही हैं। बकरियों की तीसरी बड़ी आबादी बिहार राज्य में पाई जाती है। बिहार के मुजफ्फरपुर जिले की अधिकतर महिलाएं बकरी पालन के गुणों को सीख कर बकरियों की उत्पादन और उत्पादक क्षमता को बढ़ाने के साथ साथ अपने आत्मविश्वास को भी बढ़ा रही हैं। इस कार्य हेतू मुजफ्फरपुर के बोचाचा प्रखंड में बकरीयों के लिए उत्तम किस्म का घास उगाने के उद्देश्य से अलग से जमीन की व्यवस्था की व्यवस्था भी की गई है जहां बकरियों के लिए पोषित घास उगाया जाता है। ताकि बकरियों के स्वास्थ में सुधार हो और असमय मरने की संख्या पर रोक लगाया जा सके।
स्वस्थ बकरियां अधिक मात्रा में दूध देती हैं। दूध बेचकर महिलाएं लाभ कमा रही हैं। बकरी पालन को बढ़ावा देने के लिए मिशा नामक प्रोजेक्ट की शुरुआत 2016 के मध्य में उस समय हुई जब आगा खान रूरल डवलपमेंट प्रोग्राम को बिल एवं मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की ओर से वित्तीय हायता मिली। वास्तव में फाउंडेशन द्वारा समर्थित यह देश का पहला पशुधन विकास कार्यक्रम है। पिछले कुछ सालों में मुजफ्फरपुर के 351 गांव में इस प्रोग्राम का प्रभाव फैल चुका है और अधिक संख्या में महिलाएं इससे जुड़कर रोजग़ार पा रही हैं। एक अनुमान के अनुसार महिलाओं की 70 प्रतिशत आबादी बकरी पालन के इस प्रोग्राम से जुड़कर रोजग़ार पाकर सशक्त हो रही हैं।
इसका सबसे बड़ा साक्ष्य है बकरी पालन के स्वंय सहायता समूह के इस कार्य के कारण महिलाएं ग्राम पंचायत में जॉब कार्ड तक अपनी पहुंच बना रही हैं और परिवार में उनका महत्व भी बढ़ रहा है। इन पशु सखियों का चयन स्वंय-सहायता समूह के अंतर्गत किया गया जिसमें कार्य के प्रति महिलाओं की रुची और क्षमता के आधार पर उनका चयन हुआ। इसके लिए परिवार की सहमति भी मांगी गई क्योंकि पशु सखियों को प्रशिक्षण के लिए लंबे समय तक अपने घरों से बाहर रहने के साथ बकरियां चलाना पड़ता है। परिवार की सहमति न हो तो प्रशिक्षण नही दिया जाता है। अब तक 107 महिलाओं को पशु सखियों का प्रशिक्षित दिया गया है और 143 को प्रशिक्षित किया जाना है।
प्रत्येक पशु सखी के पास 200 घरों में बकरियों के कल्याण अर्थात् देखभाल की जिम्मेदारी है। परियोजना मिशा शुरू होने से पहले बकरियों में मृत्यु दर बहुत अधिक थी। लेकिन इस परियोजना की शुरुआत और पशु सखी के प्रशिक्षण लेने के बाद इसकी संख्या में कमी आई है क्योंकि अब पशु सखी बकरियों के टिकाकरण खाने-पीने से लेकर समय समय पर उनके वजन को मापने जैसे कार्य करके बकरियों के स्वास्थ की पूरी देखभाल करती हैं जिससे बकरी पालन में लाभ ही लाभ मिल रहा है। हालांकि बिना प्रशिक्षण के जब महिलाएं बकरियां पालती थी तो सही देखभाल न मिलने के कारण बकरी असमय मर जाया करती थी या कमज़ोर दिखने के कारण बेचने पर भी महिलाओं को सही मूल्य नही मिल पाता था परंतु प्रशिक्षण के कारण सीखे गए गुणो से महिलाओं ने बकरियों की सही देखभाल का तरीका न सिर्फ जाना बल्कि ईद जैसे त्योहारों के अवसर पर उन्हे बेचने पर अब पहले से काफी अच्छे दाम मिल जाते हैं। इस प्रकार बिहार में महिलाएं पशुपालन के जरिए आत्मनिर्भर हो गई हैं।

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