scriptअभिभावकों में भी है बदलाव की जरूरत | Education system and parents | Patrika News
वर्क एंड लाईफ

अभिभावकों में भी है बदलाव की जरूरत

यूरोपियन देशों में, विकसित देशों में, अभिवावकों के ऊपर गुड पेरेंट्स होने की जिम्मेदारी होती है

Apr 03, 2018 / 03:48 pm

सुनील शर्मा

opinion,work and life,rajasthan patrika article,

education and parents

– विरासनी बघेल

भारतीय समाज में अच्छी लड़की (गुड गर्ल), अच्छा लड़का (गुड बॉय) होने के मानदंडों की लिस्ट इतनी लंबी-चौड़ी है कि सारी जिंदगी उन पैमानों पर खरा उतरने में निकल जाती है लेकिन गुड पेरेंट्स होने का कोई मानदंड नहीं है क्योंकि वो तो हमेशा अच्छे ही होते हैं। जहां तक मैंने महसूस किया है कि यूरोपियन देशों में, विकसित देशों में, अभिवावकों के ऊपर गुड पेरेंट्स होने की जिम्मेदारी होती है, उनके लिए बच्चों की परवरिश करने के लिए भी मानदंड तय किये जाते हैं ताकि वो गुड पेरेंट्स बनें।
मैंने अक्सर वहां की मूवीज में देखा है, वहां के लेखकों की किताबों में किताबों को पढ़ते हुए यही महसूस किया है कि वहां के व्यावहारिक, सामाजिक खुलेपन को हम सभी गलत समझते हैं जबकि बच्चों को सही परवरिश देने का सबसे सही तरीका वही होता है। परवरिश ऐसी होनी चाहिए कि सही-गलत सबके बारे में खुलकर बताया जाए, ना कि यह सोचना चाहिए कि यह वाली बात बताएंगे तो बेशरम कहलाएंगे, वो वाली बात बच्चों को समझ में नहीं आएगी।
आजकल की नई पीढ़ी के बच्चे बहुत ही संवेदनशील होते हैं, उनकी सीखने की क्षमता काफी ज्यादा होती है, इसलिए उन्हें सही-गलत काफी पहले से ही समझाया जाना चाहिए। आजकल एक-दूसरे से किसी भी कीमत पर आगे निकलने का नया चलन शुरू हुआ है, एक-दूसरे की कामयाबी में खुश होने की जगह जलन की भावना ज्यादा होती जा रही है, प्रसिद्धि, धन, यश की लालसा के नाम पर सकरात्मक प्रतिस्पर्द्धा की जगह गलाकाट प्रतिस्पर्द्धा शुरू हो गई है। ये हमें हमारे माता-पिता से मिला और हम अपनी अगली पीढ़ी को इस दलदल में झूठे सम्मान के नाम पर झोंकते जा रहे हैं। मानवीय मूल्यों, नैतिक मूल्यों की बातें जीवन में शामिल होने की जगह किताबों में सिमट कर रह गई हैं।
गुड गर्ल-गुड बॉय वो बच्चे नहीं होते हैं जो मानवीय मूल्यों को, मूल्यों को महत्त्व देते हैं बल्कि वो बच्चे होते हैं जो अपनी कक्षा में, खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रमों में, हर गतिविधियों में प्रथम आते हैं। दूसरे-तीसरे स्थान पर आने वाला बच्चा पिछ्लग्गू (लूज़र ) की श्रेणी में रखा जाता है तो सोचिए बाकी और बच्चे तो किसी काबिल ही नहीं होते हैं। हम इस मानसिकता का समाज तैयार कर रहे हैं। ऐसे में जब बच्चे निराश होकर गलत गतिविधियों की ओर अग्रसर होते हैं तो अभिभावक सारा दोष स्कूल पर और स्कूल सारा दोष अभिभावक पर डालकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं।
आज हम सभी की अपनी गलत मानसिकता बदलने की महती आवश्यकता है। सबसे पहले हमें मानवीय मूल्यों को, नैतिक मूल्यों को अपने जीवन में शामिल करना होगा। आचरण खुद के लिए, दूसरों के लिए सही करना होगा, तभी हम अपनी आने वाली भावी पीढ़ी को सही ज्ञान और दिशा दे पाएंगे।

Hindi News / Work & Life / अभिभावकों में भी है बदलाव की जरूरत

ट्रेंडिंग वीडियो