नाविकों को ऐसी पैंट की जरूरत थी। जिन्हें सूखा या गीला भी पहना जा सके। इन जीन्सों को सागर के पानी से एक बड़े जाल में बांध कर धोया जाता था। समुद्र के पानी उनका रंग उड़ाकर उन्हें सफेद कर देता था। इस तरह कई लोगों के अनुसार जीन्स नाम जेनोवा पर पड़ा है। जीन्स बनाने के लिए कच्चा माल फ्रांंस के निम्स शहर से आता था। जिसे फ्रांंसीसी में देनिम कहते थे। इसीलिए इसके कपड़े का नाम डेनिम पड़ गया। उन्नीसवीं सदी में अमरीका में सोने की खोज का काम चला। उस दौर को गोल्ड रश कहते हैं। सोने की खानों में काम करने वाले मजदूरों के लिए भी मजबूत कपड़ों के परिधान की जरूरत थी। सन् 1853 में लेओब स्ट्रॉस नाम के एक व्यक्ति ने थोक में वस्त्र सप्लाई का कारोबार शुरू किया। लेओब ने बाद में अपना नाम लेओब से बदल कर लेवाई स्ट्रॉस कर दिया।
लेवाई स्ट्रॉस को जैकब डेविस नाम के व्यक्ति ने जीन्स नामक पतलून की पॉकेटों को जोडऩे के लिए मेटल के रिवेट इस्तेमाल करने की राय दी। डेविस इसे पेटेंट कराना चाहता था। पर इसके लिए उसके पास पैसा नहीं था। वर्ष 1873 में लेवाई स्ट्रॉस ने कॉपर के रिवेट वाले ‘वेस्ट ओवर ऑल’ बनाने शुरू किए। तब तक अमेरिका में जीन्स का यही नाम था। वर्ष 1886 में लेवाई स्ट्रॉस ने इस पतलून पर चमड़े के लेबल लगाने शुरू कर दिए। इन लेबलों पर दो घोड़े विपरीत दिशाओं में जाते हुये एक पतलून को खींचते हुए दिखाई देते थे। इसका मतलब था कि पतलून इतनी मजबूत है कि दो घोड़े भी उसे फाड़ नहीं सकते। बीसवीं सदी में हॉलीवुड की काउ ब्वॉय फिल्मों ने जीन्स को काफी लोकप्रिय बनाया। पर यह फैशन में बीसवीं सदी के आठवें दशक में ही आई।