ब्रिटिश काल से ही हमारे देश में फांसी की सजा का चलन है। मुजरिम को फांसी के फंदे पर चढ़ाने का काम जल्लाद ही करता है। आज हम आपको जल्लाद के बारे में वह बात बताएंगे जिसे इससे पहले शायद आपने पहले कभी नहीं सुना होगा।
सबसे पहले बता दें कि उत्तरप्रदेश के मेरठ में हमारे देश की सबसे पुरानी जल्लाद फैमिली रहती है।जल्लाद परिवार इसलिए क्योंकि यह परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी से यह काम करता आ रहा है।
जी हां, इस परिवार में परदादा से लेकर पोते तक सभी अपराधियों को फांसी देने का ही काम करते आ रहे हैं। इस परिवार को कल्लू जल्लाद का परिवार के नाम से जाना जाता है।
आज इस खानदान में पवन कुमार ही इस विरासत को बड़ी ही शिद्दत के साथ संभाल रहा है। पवन ही वर्तमान समय में इस परिवार का इकलौता और जीवित वारिस है।
पवन के परदादा लक्ष्मन सिंह अंग्रेजों के जमाने में जल्लाद थे। लाहौर सेंट्रल जेल में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी के फंदे पर उनके दादा ने ही लटकाया था। परदादा के बाद उनके दादा कालूराम ने इस विरासत को संभाला। कालूराम के बाद पवन के पिता मम्मू ने और मम्मू के बाद पवन इसे संभाल रहे हैं।
पवन के दादा कल्लू सिंह को फांसी देने में महारथ हासिल था। ऐसा कहा जाता है कि उनके जैसा फांसी का फंदा बनाना किसी और के बस की बात नहीं थी। पवन के पिता मम्मू अपने जीवनकाल में कुल 12 अपराधियों को फांसी दी है।
पवन ने फंदा बनाने का और प्लैटफॉर्म तैयार करने का काम अपने दादा कल्लू सिंह से ही सीखा। अपने बचपन के दिनों से ही पवन दादा के साथ जेल में आता-जाता था और इस काम की हर बारीकी को ध्यान से सीखता था।