चित्रगुप्त जीवात्मा के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। मान्यता है कि जब किसी प्राणी की मृत्यु होती है तब धर्मराज के दूत उस व्यक्ति की आत्मा को पकड़ कर सबसे पहले इस मंदिर में चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। चित्रगुप्त जीवात्मा को उनके कर्मों का पूरा लेखा-जोखा देते हैं। इसके बाद चित्रगुप्त के सामने के कक्ष में आत्मा को ले जाया जाता है। इस कमरे को धर्मराज की कचहरी कहा जाता है। गरुड़ पुराण में भी यमराज के दरबार में चार दिशाओं में चार द्वार का उल्लेख किया गया है।
मंदिर के पुजारी लक्षमण दत्त शर्मा की मानें तो यह मंदिर झाड़ियों से घिरा था। मंदिर के ठीक सामने चित्रगुप्त की कचहरी है। यहां पर आत्मा के उल्टे पांव भी दर्शाए गए हैं। मान्यता है कि अप्राकृतिक मौत होने पर यहां पर पिंड दान किए जाते है। साथ ही परिसर में वैतरणी नदी भी है, जहां पर गौ-दान किया जाता है। इसके अलावा धर्मराज मंदिर के भीतर अढ़ाई सौ साल से अखंड धूना भी लगातार जल रहा है।
बताया जाता है कि मंदिर के पास पहुंच कर भी बहुत से लोग मंदिर में अंदर जा पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। मंदिर के बाहर से ही हाथ जोड़कर चले जाते हैं। संसार में यह इकलौता मंदिर है जो धर्मराज (यमराज) को समर्पित है।