जैसा कि हम जानते हैं कि हर धर्म,समुदाय और जाति के लोग सेना में जाकर अपने प्राणों की आहुति दे देते हैं, लेकिन आज हम आपको उस एक गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जिनका सेना से करीब 300 साल पुराना रिश्ता है।
हम यहां आंध्र प्रदेश के माधवरम गांव की बात कर रहे हैं। सैन्य विरासत और शहादत के चलते इस गांव को लोगों के सामने लाने की आवश्यकता है। गोदावरी जिले में स्थित माधवरम गांव की सबसे बड़ी खासियत है कि यहां के हर घर के किसी न किसी सदस्य का संबंध सेना से है और यह रिश्ता करीब 300 साल पुराना है।
गांव के लोगों का सेना से इस हद तक लगाव है कि यहां लोगों को सेना के पदों जैसे सूबेदार, मेजर, कैप्टन जैसे नामों से संबोधित किया जाता है और इन्हीं पदों के आधार पर बच्चों के भी नाम रखे जाते हैं। हर किसी की अपनी कहानी है जिसे वे बड़े ही गर्व से बताते हैं।
अब जरा बात करते हैं माधवरम गांव के इतिहास की जो कि वाकई में बेहद दिलचस्प है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 17वीं शताब्दी में गजपति राजवंश के राजा माधव वर्मा का यह गांव सैनिकों का ठिकाना हुआ करता है। अब जाहिर सी बात है कि उस दौरान कई सैनिकों को यहां लाकर बसाया गया। किले से लेकर हथियारों तक का जखीरा माधवरम गांव में लाया जाता था।
आलम तो यह है कि 17वीं शताब्दी से लेकर अब तक गांववासियों से सेना का रिश्ता अटूट है। एक रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया कि प्रथम विश्व युद्ध में भी माधवरम गांव के 90 सैनिकों ने हिस्सा लिया था और द्वितीय विश्व युद्ध में भी करीब 1000 लोगों ने अपना अहम योगदान दिया था।
सेना में इस गांव के लोगों के योगदान को देखते हुए इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने की आवश्यकता है। वर्तमान समय में माधवरम गांव में सैनिक स्मारक है। यहां एक मिलिट्री ट्रेनिंग सेंटर को बनाने की भी बात की जा रही है।
सेना में इस गांव के निवासियों के अहम योगदान को देखते हुए पूर्व रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने यहां मिलिट्री ट्रेनिंग सेंटर की नींव रखने की बात कही थी और यहां एक डिफेंस एकेडमी के खोलने की बात पर भी विचार की जा रही है।