बता दें कि, इस जनजाति में परिवार के तमाम फैसले भी महिलाओं द्वारा लिए जाते हैं। इस जनजाति की एक और खास प्रथा है जिसमें सारी संपत्ति घर की बड़ी बेटी नहीं बल्कि छोटी बेटी को ही मिलती है। इसके पीछे का कारण यह है कि उसे ही आगे चलकर अपने माता-पिता की देखभाल करनी होती है। छोटी बेटी को खातडुह कहा जाता है। इस जनजाति में विवाह के लिए कोई विशेष रस्म नहीं है। लड़की और माता पिता की सहमति होने पर युवक ससुराल में आना जाना शुरू कर देता है और संतान होते ही वह स्थायी रूप से वही रहने लगता है। संबंधविच्छेद भी अक्सर सरलतापूर्वक होते रहते हैं। संतान पर पिता का कोई अधिकार नहीं होता। करीब 10 लाख लोगों का वंश महिलाओं के आधार पर चलता है। यहां तक कि किसी परिवार में कोई बेटी नहीं है, तो उसे एक बच्ची को गोद लेना पड़ता है, ताकि वह वारिस बन सके।