चैत्र नवरात्रि अष्टमी को आती है ये रात
ऐसा कहा जाता है कि इस शमशान के लिए एक रात बेहद खास होती है। साल में एक बार यहां जश्न की रात होती है। इस रात में यहां एक साथ चिताएं जलाई जाती है। घुंघरुओं और तेज संगीत के बीच वैश्याओं के कदम थिरकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह सैंकड़ों सालों से परपंरा चली आ रही है। जिसमें वैश्याएं पूरी रात यहां जलती चिताओ के पास नाचती है। साल में एक बार एक साथ चिता और महफिल दोनों का ही गवाह बनता है। चैत्र नवरात्रि अष्टमी को इस घाट ऐसा होता है।
रातभर करती है डांस
माना जााता है कि यहां चिताओं के करीब नाचने वाली लड़कियां शहर की बननाम गलियों की नगर वधु (तवायफ) होती है। मणिकर्णिका घाट पर मौत के बाद मोक्ष की तलाश में मुर्दों को लाया जाता है वहीं पर ये तमाम नगरवधुएं जीते जी मोक्ष हासिल करने आती हैं। वो मोक्ष जो इन्हें अगले जन्म में नगरवधू ना बनने का यकीन दिलाता है। एक रात ये खूब नाचती है ताकि अगले जन्म में इन्हें नगरवधू का कलंक नहीं झेलना पड़ेगा।
सैकड़ों साल पुरानी परम्परा
इसके पिछले सैकड़ों सालों से चली आ रही परपंरा है। कहा जाता है कि सैकड़ों साल पहले राजा मान सिंह बनाए गए बाबा मशान नाथ के दरबार में कार्यकम पेश करने के लिए उस समय के मशहूर नर्तकियों और कलाकारों को बुलाया गया था। चूंकि ये मंदिर श्मशान घाट के बीचों बीच मौजूद होने के कारण तमाम कलाकारों ने मना कर दिया था। राजा ने डांस के इस कार्यक्रम का ऐलान पूरे शहर में दिया था। इसलिए वह अपनी बात से मुकर नहीं सकता। राजा ने शहर की बदनाम गलियों में रहने वाली नगर वधुओं को इस मंदिर में डांस करने के लिए बुलाया। यह परंपरा उस समय से चली आ रही है।