मंदिर के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित इस रसोई को दुनिया की सबसे बड़ी रसोई माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस रसोई में महाप्रसाद का निर्माण माता लक्ष्मी की देख-रेख में होता है। यहां बनाए जाने वाले 56 व्यंजनों का निर्माण धार्मिक पुस्तकों के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही पकाया जाता है। यह भोजन पूरी तरह से शाकाहारी होता है, इसमें प्याज, लहसून का प्रयोग बिल्कुल नहीं किया जाता है।
यहां दूसरी सबसे खास बात यह है कि इस भोग को मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है। इन्हें पकाने के लिए सात मिट्टी के बर्तनों को एक के ऊपर एक रखा जाता है और इन्हें लकड़ी के चूल्हें में पकाया जाता है। सबसे खास बात यह है कि सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले और सबसे नीचे रखे बर्तन का खाना बाद में पकता है।
यहां खाने पकाने के लिए आज भी पारंपरिक शैली का ही प्रयोग किया जाता है। यहां रसोई के पास दो कुएं है जिन्हें गंगा-यमुना के नाम से जाना जाता है। भोजन को बनाने के लिए इन दो कुएं से पानी निकालकर उनसे ही खाना बनाया जाता है।
यहां हर रोज पूरे साल यही प्रक्रिया चलती रहती है। यहां एक और खास बात यह है कि इस महाप्रसाद को चाहें 10 हजार लोग खाए या 10 लाख, यह न तो कभी कम पड़ती है और न ही कभी ज्यादा। इसका एक भी दाना व्यर्थ नहीं जाता है। यहां हर रोज महाप्रसाद लेने के लिए लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा रहता है।