वर्षों से है दोनों मशीनों की मांग
नगर में मेडिकल कॉलेज की स्थापना के पहले से सीटी स्कैन और एमआरआइ की आवश्यकता महसूस की जा रही थी, मांग भी खूब है, लेकिन जिले के कर्णधारों के रूचि न लेने से सारी मांग जैसे ठंडे बस्ती में बांध कर रख दी जाती हैं। आश्चर्य है कि निजी चिकित्सकों ने अपने खुद के खर्च और खुद के प्रयासों से ये दोनों मशीनें अपने प्रतिष्ठान पर लगवा लीं, लेकिन करोड़ों का मेडिकल कॉलेज खड़ा कर देने वाली सरकार यह काम तीन साल में भी नहीं करा सकी। हाल ही में कोरोना काल में भी सीटी स्कैन की बहुत जरूरत पड़ी और लोगों को निजी प्रतिष्ठानों या फिर भोपाल-इंदौर जाना पड़ा। यही हाल एमआरआइ का भी है।
नगर में मेडिकल कॉलेज की स्थापना के पहले से सीटी स्कैन और एमआरआइ की आवश्यकता महसूस की जा रही थी, मांग भी खूब है, लेकिन जिले के कर्णधारों के रूचि न लेने से सारी मांग जैसे ठंडे बस्ती में बांध कर रख दी जाती हैं। आश्चर्य है कि निजी चिकित्सकों ने अपने खुद के खर्च और खुद के प्रयासों से ये दोनों मशीनें अपने प्रतिष्ठान पर लगवा लीं, लेकिन करोड़ों का मेडिकल कॉलेज खड़ा कर देने वाली सरकार यह काम तीन साल में भी नहीं करा सकी। हाल ही में कोरोना काल में भी सीटी स्कैन की बहुत जरूरत पड़ी और लोगों को निजी प्रतिष्ठानों या फिर भोपाल-इंदौर जाना पड़ा। यही हाल एमआरआइ का भी है।
ब्लड सेपरेशन मशीन भी नहीं
विदिशा में रक्तदाताओं की कमी नहीं है, एक आवाज पर लोग रक्तदान कर दूसरों का जीवन बचाने चले आते हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि विदिशा जैसे जिले में ब्लड सेपरेशन मशीन तक उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि कई लोगों को जब प्लाज्मा आदि की जरूरत होती है तो उन्हें भोपाल भागना पड़ता है और फिर वे भोपाल-इंदौर के मंहगे निजी अस्पतालों के शिकार होकर अपनी मोटी रकम वहां चढ़ाने को मजबूर होते हैं। डेंगू में जब लोगों की प्लेटलेट्स कम हो रही हैं तो इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता महसूस हो रही है।
विदिशा में रक्तदाताओं की कमी नहीं है, एक आवाज पर लोग रक्तदान कर दूसरों का जीवन बचाने चले आते हैं। लेकिन दुर्भाग्य है कि विदिशा जैसे जिले में ब्लड सेपरेशन मशीन तक उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि कई लोगों को जब प्लाज्मा आदि की जरूरत होती है तो उन्हें भोपाल भागना पड़ता है और फिर वे भोपाल-इंदौर के मंहगे निजी अस्पतालों के शिकार होकर अपनी मोटी रकम वहां चढ़ाने को मजबूर होते हैं। डेंगू में जब लोगों की प्लेटलेट्स कम हो रही हैं तो इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता महसूस हो रही है।
कॉलेज में 52 फैकल्टी की भर्ती भी अटकी
कॉलेज शुरू होने के साथ ही अब जबकि कॉलेज का अस्पताल भी लगभग पूरी तरह शुरू हो चुका है तो चिकित्सकों और फैकल्टी की कमी कॉलेज प्रबंधन को खल रही है। काफी समय पहले 52 फैकल्टी के इंटरव्यू हो चुके हैं, लेकिन लिस्ट लटकाकर रखी गई है। पहले एक कमिश्नर और अब दूसरे कमिश्नर ने ये विभिन्न कारणों से सूची अटका रखी है। बताया जाता है कि इसमें कई बार आरक्षण के रोस्टर का भी पेंच आया, उसे बार-बार सुलझाया गया लेकिन फिर भी सूची जारी नहीं हो सकी।
कॉलेज शुरू होने के साथ ही अब जबकि कॉलेज का अस्पताल भी लगभग पूरी तरह शुरू हो चुका है तो चिकित्सकों और फैकल्टी की कमी कॉलेज प्रबंधन को खल रही है। काफी समय पहले 52 फैकल्टी के इंटरव्यू हो चुके हैं, लेकिन लिस्ट लटकाकर रखी गई है। पहले एक कमिश्नर और अब दूसरे कमिश्नर ने ये विभिन्न कारणों से सूची अटका रखी है। बताया जाता है कि इसमें कई बार आरक्षण के रोस्टर का भी पेंच आया, उसे बार-बार सुलझाया गया लेकिन फिर भी सूची जारी नहीं हो सकी।
पीपीपी मोड पर लगना है सीटी स्कैन और एमआरआइ मशीन
मेडिकल कॉलेज में सीटी स्कैन और एमआरआइ मशीन पीपीपी मोड पर लगाई जाना है। इसके लिए संबंधित एजेंसी को अनुमति दी जा चुकी है। आर्डर हो चुके हैं, लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी ये अत्यावश्यक मशीनें न तो आ पा रही हैं और न इसकी सुविधा जिले के मरीजों को मिल पा रही है।
मेडिकल कॉलेज में सीटी स्कैन और एमआरआइ मशीन पीपीपी मोड पर लगाई जाना है। इसके लिए संबंधित एजेंसी को अनुमति दी जा चुकी है। आर्डर हो चुके हैं, लेकिन महीनों बीत जाने के बाद भी ये अत्यावश्यक मशीनें न तो आ पा रही हैं और न इसकी सुविधा जिले के मरीजों को मिल पा रही है।
अब 8-10 हजार की ओपीडी हर माह
कॉलेज प्रबंधन की मानें तो कॉलेज का हास्पिटल श्ुारू हो जाने के बाद से यहां लगातार ओपीडी में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। अभी हर महीने करीब 8-10 हजार लोग ओपीडी में पहुंचने लगे हैं। 15 अगस्त के बाद से शुरू हुए इस अस्पताल में सितंबर माह में ही 8285 मरीज ओपीडी में अपना परीक्षण करा चुके थे। वहीं अभी मेडिकल कॉलेज के चिकित्सालय में 120 लोग भर्ती हैं, इनमें से सर्वाधिक मेडिसीन विभाग के हैं।
कॉलेज प्रबंधन की मानें तो कॉलेज का हास्पिटल श्ुारू हो जाने के बाद से यहां लगातार ओपीडी में मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। अभी हर महीने करीब 8-10 हजार लोग ओपीडी में पहुंचने लगे हैं। 15 अगस्त के बाद से शुरू हुए इस अस्पताल में सितंबर माह में ही 8285 मरीज ओपीडी में अपना परीक्षण करा चुके थे। वहीं अभी मेडिकल कॉलेज के चिकित्सालय में 120 लोग भर्ती हैं, इनमें से सर्वाधिक मेडिसीन विभाग के हैं।
ब्लड बैंक के लिए हुआ सर्वे
न तो जिला अस्पताल में और न ही शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय में ब्लड सेपरेशन की सुविधा उपलब्ध है। कहा तो जा रहा है कि मेडिकल कॉलेज के अस्पताल के लिए अलग से राष्ट्रीय स्तर के ब्लड बैंक की परिकल्पना की गई है। इसके लिए सर्वे भी हो चुका है, लेकिन बात अभी भी फिलहाल ज्यादा आगे नहीं बढ़ी है। मप्र शासन द्वारा इस ब्लड बैंक की स्थापना हाइट्स एजेंसी के माध्यम से कराए जाने की तैयारी है, लेकिन इसमें अभी काफी वक्त लगेगा और मेडिकल कॉलेज भवन में ही ब्लड बैंक की स्थापना के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में भी कुछ परिवर्तन करना पड़ेगा।
न तो जिला अस्पताल में और न ही शासकीय चिकित्सा महाविद्यालय में ब्लड सेपरेशन की सुविधा उपलब्ध है। कहा तो जा रहा है कि मेडिकल कॉलेज के अस्पताल के लिए अलग से राष्ट्रीय स्तर के ब्लड बैंक की परिकल्पना की गई है। इसके लिए सर्वे भी हो चुका है, लेकिन बात अभी भी फिलहाल ज्यादा आगे नहीं बढ़ी है। मप्र शासन द्वारा इस ब्लड बैंक की स्थापना हाइट्स एजेंसी के माध्यम से कराए जाने की तैयारी है, लेकिन इसमें अभी काफी वक्त लगेगा और मेडिकल कॉलेज भवन में ही ब्लड बैंक की स्थापना के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में भी कुछ परिवर्तन करना पड़ेगा।
वर्जन…
मैंने सीटी स्कैन के बारे में कई बार पूछा तो आने वाली है जवाब दिया गया। करीब आठ माह पहले जब विधानसभा चल रही थी तब भी मैने पूछा था तो यही जवाब दिया था कि एक माह में लग जाएगी। लेकिन वह एक माह अब तक नहीं हुआ। मेडिकल कॉलेज खुल गया, लेकिन सरकार उसकी व्यवस्थाएं नहीं जुटा पा रही है।
-शशांक भार्गव, विधायक विदिशा
वर्जन…
मेडिकल कॉलेज का हास्पिटल पूरी तरह शुरू हो चुका है। महीने में करीब 8-10 हजार की ओपीडी चल रही है। सीटी स्कैन और एमआरआइ के लिए आर्डर हो चुके हैं, मशीनें अभी नहीं आई हैं। ब्लड सेपरेशन मशीन नहीं है, लेकिन कॉलेज में पूर्ण सुविधायुक्त ब्लड बैंक स्थापना की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
-डॉ. सुनील नंदीश्वर, डीन, शासकीय अटल बिहारी वाजपेयी चिकित्सा महाविद्यालय, विदिशा