जगत का भ्रमण करने की अनुमति मांगने आते है
इस मंदिर की विशालता और गगनचुंबी शिखर समकालीन चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित खजुराहो के मंदिरों से समानता रखते हैं। मंदिर के गर्भग्रह में विशाल शिवलिंग है, मंदिर का वास्तु कुछ इस प्रकार का है कि सूर्योदय के बाद सूर्य की पहली किरण सीधे गर्भग्रह में शिवलिंग पर पहुंचती है। मानो सूर्यदेव भोलेनाथ के दर्शन कर उनसे पूरे जगत का भ्रमण करने की अनुमति मांगने आते है।
तीन ओर मुख मंडप
गर्भग्रह के दोनों ओर गंगा-यमुना की प्रतिमाएं हैं। मंदिर के पूरे बाहरी हिस्से पर शिव, गणेश, महिषासुर मर्दिनी के विभिन्न रूपों के साथ ही देवी देवताओं को उत्कीर्ण किया गया है। इस मंदिर को देखकर आश्चर्य होता है कि मुगल आक्रमणकारियों के उपद्रव के बावजूद ये मंदिर इतना सुरक्षित कैसे बचा रह गया। मंदिर के विशाल परिसर में मंडल के साथ ही प्रवेश के लिए तीन ओर मुख मंडप हैं।
विधिवत पूजा की थी
शिवरात्रि और सावन सोमवार पर इन दरवाजों का उपयोग होता है। प्राचीन शिवलिंग पर पीतल का आकर्षक खोल भी चढ़ाया गया है। यह खोल 1775 में भेलसा(विदिशा का पुराना नाम)के सूबा खांडेराव अप्पा जी ने मंदिर के भीतर स्थित मुख्य शिवलिंग पर पीतल का खोल चढ़ाकर उसकी विधिवत पूजा की थी।
भव्य प्रतिमा विराजित है
मंदिर शिखर के कुछ नीचे नटराज की भव्य प्रतिमा विराजित है। शिखर के शीर्ष से कुछ नीचे एक मानव की प्रतिमा भी है, जिसे कुछ विद्वान मंंदिर के मुख्य वास्तुविद की मूर्ति मानते हैं तो कुछ इतिहासकारों ने इसे राजा उदयादित्य को स्वर्गारोहण करते बताया है। मंदिर में मूर्तिकला, तोरणद्वार, मेहराबें अत्यंत भव्य और दर्शनीय है।