मंदिर के पुजारी पं. सुमित चौबे बताते हैं कि दसवीं शताब्दी में यहां शंकर सिंह सेंगर के भाई का राज था, वे आला ऊदल के रिश्तेदार भी माने जाते हैं। इसी सेंगर राजवंश की ये कुलदेवी हैं। सदियों तक यह मंदिर बंद रहा और ताला जड़ा रहा। किसी ने ताला खोलने का प्रयास भी नहीं किया और न ही हिम्मत की। इस भवन में पहले राजा की कचहरी होती थी, पीछे ही महल भी है। बाद में यहां तहसील कार्यालय लगने लगा।
1980 में यहां के तहसीलदार त्रिवेदी की धर्मपत्नी को देवी की मौजूदगी का स्वप्न आया तो तहसीलदार ने ताला खुलवाया और यहां मौजूद देवी की आराधना शुरू कराई। क्षेत्र के महेंद्र सिंह राजपूत बताते हैं कि हम सेंगर राजपूतों की यह कुलदेवी हैं और हम यहीं देवी आराधना के लिए आते हैं। लटेरी के तहसीलदार अजय शर्मा बताते हैं कि अगस्त 1994 तक लटेरी तहसील उसी पुराने भवन में संचालित थी। सितंबर 1994 में यह नए भवन में शिफ्ट हो गई।