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वाराणसी

यूरोप और अमेरिका की तर्ज़ पर भारत के जीन संबंधी रोगों का अध्ययन संभव नहीं

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के जंतु विज्ञान विभाग में 3 दिन तक चले नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग वर्क्शाप में देश विदेश के विशेषज्ञों ने विज्ञान की इस विधा (नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग) पर गहन मंथन किया। इस दौरान उन्होंने यूरोप, अमेरिका और ऐसे अन्य विकसित देशों की जेनेटिक बीमारियों का बखूबी विश्लेषण कर ये बताया कि यूरोप और अमेरिका की तर्ज पर भारत में जीन संबंधित रोगों का अध्ययन नहीं हो सकता।

वाराणसीJul 31, 2022 / 07:42 pm

Ajay Chaturvedi

Workshop on Genome Sequencing at Department of Zoology BHU

Workshop on Genome Sequencing at Department of Zoology BHU

वाराणसी. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के जंतु विज्ञान विभाग में 3 दिन तक चले नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग वर्क्शाप में देश विदेश के विशेषज्ञों ने विज्ञान की इस विधा (नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वेंसिंग) पर मंथन किया। विशेषज्ञ इस बात पर सहमत थे की यूरोप और अमेरिका के तर्ज़ पर भारत के जीन संबंधित रोगों का अध्ययन नहीं हो सकता। इस पर अब तक किए गए प्रोजेक्ट इसी लिए फेल हुए।
Workshop on Genome Sequencing at Department of Zoology BHU
विशिष्ट है भारत की जैव विविधता

जंतु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और जिनोम सिक्वेसिंग एक्सपर्ट प्रो ज्ञानेश्वर चौबे ने पत्रिका को बताया कि तीन दिन तक चली कार्यशाला के दौरान विशेषज्ञ इस बात पर एकमत दिखे कि भारत की जैव विविधता बहुत ही विशिष्ट है और विश्व के अन्य देशों से भिन्न है। भारत में पायी जाने वाली जातियां और जन-जातियां एंडोगेमस मैरिज सिस्टम को फ़ॉलो करती है। एंडोगेमस मैरिज सिस्टम में कोई भी जाति या जनजाति अपने में ही शादी करती है और इस प्रक्रिया के कारण हर एक जाति या जनजाति भारत में यूनीक जेनेटिक प्रोफ़ाईल बनाती है। इस जेनेटिक प्रोफ़ाइल के कारण हर एक जाति और जनजाति में बहुत ही अलग अलग तरह के जीन संबंधित रोग पाए जाते है। इसीलिए जीन के आधार पर बनायी गयी दवाए रोगों के इलाज में कारगर होंगी। बैज्ञानिको ने इस बात पर ज़ोर दिया कि नेक्स्ट जेनरेशन सीक्वन्सिंग का उपयोग इस दिशा में एक नई क्रांति ले आएगा। भारत के वन-हेल्थ मिशन को एक मज़बूत नींव प्रदान करेगा।

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