दुर्गाकुंड स्थित दुर्गा मंदिर के महंत कौशल पति द्विवेदी की मानें, तो सामान्य तौर पर ईसाई धर्म मानने वाले अंग्रेज या मुस्लिमों को मंदिर में नहीं आने दिया जाता है। केवल हिंदू धर्म को मानने वाले मंदिर में प्रवेश करते हैं और दर्शन पूजन करते हैं। 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दर्शन पूजन किया था।
द्वार पर दी सूचना हिंदी में लिखा है: जो लोग आर्य धर्म नहीं मानते वे इस मंदिर में प्रवेश न करें। इंग्लिश में लिखा है: GENTLEMEN NOT BELONGING TO HINDU RELIGIONARE REQESTED NOT TO ENTER THE TEMPLE
उर्दू में लिखा है: हिन्दू नहीं हैं, इस मंदिर में तशरीफ़ ना ले जावें। ‘काशी खंड’ में मंदिर का उल्लेख दुर्गा मंदिर काशी के प्राचीन मंदिरों में से एक है। मंदिर का उल्लेख ‘काशी खंड’ में भी किया गया है। इस मंदिर में माता दुर्गा यंत्र के रूप में विराजमान हैं। मंदिर के निकट ही बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी, और माता काली की मूर्तियां अलग से मंदिरों में स्थापित हैं। ऐसी भी मान्यता है कि ये देवी का आदि मंदिर है, इसके अतिरिक्त वाराणसी में केवल दो ही मंदिर काशी विश्र्वनाथ और मां अन्नपूर्णा मंदिर ही प्राचीनतम हैं।
राजा सुबाहु ने कराया था मंदिर का निर्माण दुर्गा मंदिर की स्थापना को लेकर एक अद्भुत कहानी है। कहा जाता है कि अयोध्या के राजकुमार सुदर्शन का विवाह काशी के नरेश सुबाहु की बेटी से कराने के लिए माता ने सुदर्शन के विरोधी राजाओं का वध कर उनके रक्त से कुंड को भर दिया था। उसे ही रक्त कुंड कहते हैं। बाद में राजा सुबाहु ने यहां दुर्गा मंदिर का निर्माण करवाया और 1760 ईस्वी में रानी भवानी ने इसका जीर्णेद्धार करवाया था।