चिकित्सकों के अनुसार पुरुषों में टेस्टोस्ट्रॉन और महिलाओं में एस्ट्रोजेन हार्मोन से शरीर का विकास होता है। कई बार डिसऑर्डर ऑफ सेक्सुअल डेवलपमेंट (डीएसडी) के कारण लोग ट्रांसजेंडर की श्रेणी में आ जाते हैं। आईएमएस बीएचयू में एनाटॉमी, इंड्रोक्राइन, यूरोलॉजी, पीडियाट्रिक सर्जरी और मानसिक विभाग के संयुक्त अध्ययन में पाया गया कि कई बार पुरुषों में टेस्टोस्ट्रॉन हार्मोन की कमी से वह लड़कियों जैसा, वहीं महिलाएं में एस्ट्रोजेन की कमी या टेस्टोस्ट्रॉन हार्मोन सामान्य से अधिक मात्रा में होने से वह पुरुषों जैसा व्यवहार करती हैं।
सैंपल के अध्ययन के बाद पहले इन्हें हार्मोनल थेरेपी दी जाएगी। इसके बाद अगर सुधार नहीं होगा तो बच्चों की पीडियाट्रिक और युवाओं की यूरोलॉजी विभाग में सर्जरी की जाती है।
आंत के टुकड़े और चमड़ी से बनता है वेजाइनायूरोलॉजी विभाग के प्रो. समीर त्रिवेदी ने बताया कि अगर कोई ट्रांसजेंडर लड़की की तरह है और उसका प्राइवेट पार्ट पुरुषों जैसा है तो पहले उसकी और उसके अभिभावक की राय ली जाती है कि वह बनना क्या चाहते हैं। लड़की बनना चाहता हैं तो प्राइवेट पार्ट को हटा दिया जाता है। इसके साथ प्लास्टिक सर्जरी से आंत के टुकड़े और चमड़ी से वेजाइना (योनि) तैयार की जाती है।
अगर कोई लड़के की तरह है और प्राइवेट पार्ट महिला की तरह है। वह पुरुष बनना चाहता है तो यूट्रस अंडाशय हटा दिया जाता है। महिलाओं में क्लाइटोरेस अंग होता है। इसे विकसित कर पुरुष गुप्तांग का स्वरूप दिया जाता है। कृत्रिम टेस्टिस को मरीज के अंडकोश में लगाया जाता है। जिससे वह सामान्य पुरुष की तरह दिख सके। प्रो. समीर त्रिवेदी ने बताया कि इस सर्जरी में 50 हजार रुपये से कम का खर्च आता है।
एनाटॉमी विभाग की प्रो. रायॅना सिंह ने बताया कि ट्रांसजेंडर पहले इंडोक्राइन या पीडियाट्रिक विभाग में आता है। वहां पर हार्मोन की जांच की जाती है। इससे पता चलता है कि उसमें किस हार्मोन की कमी और किसकी मात्रा ज्यादा है। इसके बाद एनाटॉमी विभाग में जीन की जांच के लिए भेजते हैं। जीन की रिपोर्ट के आधार पर तय किया जाता है कि मरीज को हार्मोनल थेरेपी दी जाएगी या सर्जरी की जाएगी।