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वाराणसी

वाराणसी मेट्रोः सरकार के एक हस्ताक्षर से डूबे जनता के 3.60 करोड़

फिर राइट्स के साथ एमओयू, अखिलेश सरकार में इसी संस्था को दिए गए थे 3.60 करोड़ रुपये, अब फिर दिया गया 81 लाख रुपये।

वाराणसीFeb 19, 2018 / 04:12 pm

Ajay Chaturvedi

मेट्रो रेल फाइल फोटो

मेट्रो रेल फाइल फोटो

डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदी

वाराणसी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में मेट्रो रेल लाइन बिछाने के नाम पर योगी सरकार के एक फैसले के चलते जनता की गाढ़ी कमाई के 3.60 करोड़ रुपये डूब गए। अब नए सिरे से उसी पुरानी कंपनी राइट्स के साथ वाराणसी विकास प्राधिकरण ने सोमवार को करार नामे (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया। वाराणसी में मेट्रो रेल लाइन बिछाने के लिए सर्वे करने और डीपीआर तैयार करने के एवज में राइट्स को अबकी बार 81 लाख रुपये का भुगतान किया गया है। यह जानकारी वीडीए के सचिव विशाल सिंह ने पत्रिका संग खास बातचीत में दी। उन्होंने बताया कि राइट्स के साथ आज समझौता हो गया है। राइट्स के जीजीएम बिरेश गोयल ने एमओयू पर हस्ताक्षर किया। अब उसे 28 फरवरी तक अपनी सर्वे रिपोर्ट शासन को भेजनी है। ऐसे में सर्वे का काम आज से ही शुरू करने को कह दिया गया है।
बता दें कि वाराणसी में मेट्रो रेल लाइन बिछाना पूर्व मुख्य मंत्री अखिलेश यादव का सपना था। इसके लिए उन्होंने सारी कवायद पूरी की। राइट्स कंपनी को डीपीआर बनाने का काम सौंपा गया। कंपनी ने 29 जून 2016 को वाराणसी डीपीआर तैयार हो गया। वह शासन को सुपुर्द कर दिया गया। कुल 15,000 करोड़ की महत्वाकांक्षी परियोजना के लिए पूर्व सीएम अखिलेश ने मेट्रो मैन श्रीधरन को वाराणसी भेजा। श्रीधरन ने राइट्स के डीपीआर को देखने के साथ ही उन सभी स्थलों का निरीक्षण भी किया जहां स्टेशन बनाए जाने थे या जिन-जिन मार्गों से मेट्रो रेल लाइन को गुजरना था। सूक्ष्म अध्ययन के बाद श्रीधरन ने मीडिया को बताया था कि मुश्किल तो है काशी में मेट्रो रेल दौड़ाना लेकिन नामुमकिन नहीं। काम होगा और चार साल में एक कॉरीडोर तो छह साल में दोनों कॉरीडोर का काम पूरा हो जाएगा।
बता दें कि पुरानी योजना के तहत मेट्रो के लिए दो रूट तय किए गए थे। इसमें एक बीएचयू से भेल, शिवपुर तो दूसरा बेनियाबाग से सारनाथ तक। दोनों को मिला कर कुल लंबाई 29.3 किलोमीटर थी जबकि भूमिगत लाइन 23 किलोमीटर। इसमें बीएचयू से भेल की लंबाई 19.33 किलोमीटर थी। इसमें 15.5 किलोमीटर भूमिगत शेष शिरोपरि। इस रूट पर 17 स्टेशन प्रस्तावित थे। दूसरे बेनिया से सारनाथ के बीच 9.88 किलोमीटर लंबी लाइन प्रस्तावित थी। इस रूट पर 8.33 किलोमीटर मेट्रो लाइन भूमिगत थी। इस रूट पर कुल नौ स्टेशन प्रस्तावित किए गए थे। ऐसे में कुल 26 स्टेशन बनाने का प्रस्ताव था। परियोजना पर 17,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान था। इसके लिए बेनियाबाग में टर्मिनल प्रस्तावित था तो हरहुआ के गणेशपुर में 14 हेक्टेयर में वर्कशॉप का निर्माण प्रस्तावित था।
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कहा गया था कि 80 फीसदी लाइन भूमिगत है। लिहाजा खोदाई के दौरान काशी के अतीत के पुरावशेष भी मिलें। कंसल्टेंट ने इसके लिए संग्रहालय का नक्शा भी तैयार किया था ताकि प्राचीनतम जीवंत नगरी के अतीत को संग्रहीत किया जा सके। वह संग्रहायल ग्रीस के एथेंस मेट्रो स्टेशन की तर्ज पर तैयार किया गया था। उम्मीद की जा रही थी कि 2017 विधानसभा चुनाव से पूर्व ही तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव वाराणसी में मेट्रो रेल लाइन की आधारशिला रख देंगे क्योंकि ये सारी तैयारी नवंबर 2016 में ही ली गई थी। लेकिन तब केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालाय ने पूरे प्रोजेक्ट को ढंटे बस्ते में डाल दिया। तर्क यह दिया गया था कि 17,000 करोड़ रुपये की इस महत्वाकांक्षी परियोजना की फंडिंग कैसे होगी यही तय नहीं था। मसलन कितनी धनराशि केंद्र देगा कितनी राशि राज्य सरकार वहन करेगी। पूरी परियोजना के लिए किससे लोन लिया जाएगा। यह भी तय नहीं था। इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने तब यह अड़ंगा लगाया कि काशी में मेट्रो रेल पर खर्च होने वाली धनराशि बैक कैसे होगी। तब सूत्रों ने बताया था कि केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय का कहना था कि इतनी बड़ी धनराशि खर्च होने के बाद उसकी रिकवरी नहीं हो पाएगी।
लेकिन सारी तैयारी के बाद तत्कालीन सीएम अखिलेश वाराणसी में मेट्रो रेल लाइन की आधारशिला नहीं रख पाए। अब नई सरकार यानी योगी आदित्यनाथ सरकार ने अपने दूसरे बजट में मेट्रो रेल के लिए बजट का प्रावधान किया। शासन ने फिर से उसी कंसल्टेंट यानी राइट्स को सर्वे आदि के लिए अधिकृत किया जिसे पूर्व में पूर्व सीएम अखिलेश ने तय किया था और जिसे सर्वे और डीपीआर तैयार करने के लिए 3.60 करोड़ का भुगतान भी कर दिया गया था। अब उसी कंपनी को दोबारा 81 लाख रुपये दे दिए गए हैं। कंपनी ने अपना काम 19 फरवरी 2018 से शुरू कर दिया है और उसे 28 फरवरी 2018 तक अपनी रिपोर्ट शासन को देनी है जैसा वाराणसी विकास प्राधिकरण के सचिव विशाल सिंह ने पत्रिका को बताया।
सूत्रों की मानें तो राजनीतिक रूप से संवेदनशील उत्तर प्रदेश के दो शहरों वाराणसी और कानपुर में मेट्रो रेल निर्माण की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) को केंद्र सरकार द्वारा खारिज कर दिए जाने से प्रदेश सरकार के अधिकारी सकते में आ गए थे क्योंकि इनमें से एक शहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और दूसरा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का गृह जिला। बता दें कि तत्कालीन शहरी विकास मंत्री रहे उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 4 अक्टूबर 2016 को कानपुर मेट्रो रेल योजना की आधारशिला रखी थी और लगभग एक साल बाद केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को नई विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के साथ आने को कहा था। वाराणसी मेट्रो का डीपीआर 29 जून 2016 को जमा किया गया था और तब से अपनी जनसभाओं में प्रधानमंत्री यह बात कहते आए कि वाराणसी में मेट्रो लाना उनका सपना है। अब किसी को भी स्पष्ट तौर पर नहीं पता कि प्रधानमंत्री के सपने का क्या होगा। उन्होंने वाराणसी को क्योटो में बदल देने का भी वादा किया था।
वाराणसी और कानपुर मेट्रो योजना के नई मेट्रो रेल नीति के अनुसार नहीं होने के कारण केंद्र सरकार ने इस पर आपत्ति जताते हुए राज्य सरकार से परियोजना पर फिर से काम करने और नए प्रस्ताव को दोबारा भेजने के लिए कहा है। नई नीति में परियोजना का आकलन शहरी परिवहन जैसे तीसरे पक्ष के द्वारा किए जाने की बात की गई है। राज्यों को मेट्रो परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए संसाधनों को जुटाने में रचनात्मक प्रक्रिया को अपनाने की जरूरत पर बल दिया गया है। ये दिशानिर्देश उस जगह पर जनसंख्या के घनत्व और परिवहन की वैकल्पिक व्यवस्था के बारे में भी बात करते हैं जहां मेट्रो परियोजनाएं शुरू की जानी हैं। यूपी के नेताओं के लिए मेट्रो परियोजनाएं बहुत पसंदीदा शब्द हैं। इस परियोजना के पहले चरण का उद्घाटन लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने किया था। जबकि कानपुर, वाराणसी, मेरठ, इलाहाबाद, गोरखपुर और आगरा समेत 6 अन्य शहरों में यह परियोजना प्रस्तावित है। मेरठ और आगरा मेट्रो का डीपीआर तैयार है, जबकि मुख्यमंत्री के गृह जिले गोरखपुर और इलाहाबाद के डीपीआर पर काम चल रहा है।

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