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राजा भैया ने प्रतापगढ़ व कौशांबी से अपनी पार्टी जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के बैनर तले प्रत्याशी उतारे थे। प्रतापगढ़ से राजा भैया के भाई अक्षय प्रताप सिंह व कौशांबी से सपा के पूर्व सांसद रहे शैलेन्द्र कुमार पासी को उतारा था। दोनों ही क्षेत्र में पांच बार से अधिक कुंडा के विधायक रहे राजा भैया के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है लेकिन राजा भैया ने जैसे ही अपनी पार्टी बनायी थी वैसे ही जनता उनसे दूर हो गयी। प्रतापगढ़ में राजा भैया के प्रत्याशी चौथे नम्बर पर थे जबकि कौशांबी में तीसरे नम्बर पर। बड़ा सवाल है कि क्या अब राजा भैया की नयी राजनीतिक पार्टी का वजूद यूपी चुनाव 2022 तक बचा रहेगा। या एक बार फिर राजा भैया निर्दल विधायक के रुप में अपनी पारी जारी रखेंगे।
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लोकसभा चुनाव 2019 में बसपा से गठबंधन करने के बाद भी सपा को करारी शिकस्त मिली है। सपा में शिवपाल यादव की वापसी के लिए मुलायम सिंह यादव लग गये हैं और एक-दो दिन में शिवपाल की सपा में वापसी हो सकती है। शिवपाल यादव के सपा में जाते ही उनकी पार्टी का वजूद खत्म हो जायेगा। शिवपाल यादव की घर वापसी तो हो सकती है लेकिन राजा भैया की कहानी यहां पर आकर अलग हो जाती है। राजा भैया की बसपा सुप्रीमो मायावती से राजनीतिक अदावत किसी से छिपी नहीं है। अखिलेश यादव से भी उनके संबंध पहले जैसे नहीं है। ऐसे में राजा भैया के लिए यूपी में बीजेपी, सपा, कांग्रेस व बसपा के बीच में अपनी पार्टी का वजूद बचाये रखना बेहद कठिन है। राजा भैया अब यूपी चुनाव 2022 में अपनी पार्टी से प्रत्याशी उतारने का जोखिम नहीं उठायेंगे। राजा भैया के पास दो ही विकल्प बचे हैं या तो कुंडा से निर्दल ही चुनाव लड़ते रहे। या फिर अपनी पार्टी के एकमात्र विधायक बन जाये।
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