scriptलोकसभा 2019 में हार चुके राजनीतिक रुतबा कायम करने की लड़ाई, यूपी विधानसभा चुनाव तक बचेगा पार्टी का वजूद | Shivpal Yadav and Raja bhiya party will not fight UP Election 2022 | Patrika News
वाराणसी

लोकसभा 2019 में हार चुके राजनीतिक रुतबा कायम करने की लड़ाई, यूपी विधानसभा चुनाव तक बचेगा पार्टी का वजूद

कभी इन नेताओं के इशारे पर सरकार बनती व गिर जाती थी, अपना दल बनाते ही दूर हुआ जनसमर्थन

वाराणसीJun 06, 2019 / 02:40 pm

Devesh Singh

Shivpal Yadav and Raja bhiya

Shivpal Yadav and Raja bhiya

वाराणसी. समय कभी एक जैसा नहीं होता है। यह बात यूपी के दो कद्दावर नेता पर बिल्कुल सटीक बैठती है। यूपी की राजनीति में इन नेताओं का इतना रसूख था कि इशारे पर सरकार बन व गिर जाती थी। राजनीतिक रसूख का कायम रखने के लिए लोकसभा चुनाव 2019 में अपनी पार्टी बना कर चुनावी दंगल में प्रत्याशियों का उतारा था। चुनाव में मिली करारी हार ने साबित किया कि जनता अब इन जनप्रतिनिधियों के साथ नहीं है। यूपी चुनाव 2022 तक इन राजनेताओं की पार्टी का वजूद बचेगा या नहीं। इस पर भी अब सबकी निगाहे लगी है।
यह भी पढ़े:-बाहुबली अतीक अहमद को उपलब्ध करायी थी खास व्यवस्था, जांच शुरू
सपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के पर्याय माने जाने वाले शिवपाल यादव व कुंडा के बाहुबली विधायक राजा भैया की यही कहानी हो गयी है। यूपी में दोनों कद्दावर नेताओं का अपना राजनीतिक रसूख था। कभी राजा भैया ने बसपा व बीजेपी सरकार को गिराने के लिए निर्दलीय विधायकों के साथ बगावत की थी। यूपी में बीजेपी व सपा सरकार में हमेशा ही राजा भैया का वर्चस्व दिखता था निर्दल होने के बाद भी उन्हें सरकार में शािमल कर मंत्री पद दिया जाता था। ऐसी स्थिति शिवपाल यादव की थी। अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने से पहले शिवपाल यादव की मांग को सपा सरकार में कभी नजरअंदाज नहीं किया जाता था। एक समय कहा जाता था कि मुलायम सिंह यादव के बाद शिवपाल भी प्रदेश के सीएम बन सकते हैं। समय ने जब मुंह फेरा तो शिवपाल यादव को सपा छोड़ कर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया का गठन करना पड़ा। लोकसभा चुनाव में शिवपाल यादव की पार्टी ने 50 सीटों से अधिक पर उम्मीदवार उतारा था लेकिन एक भी प्रत्याशी नहीं जिता पाये थे। शिवपाल यादव ने अखिलेश यादव व मायावती के गठबंधन को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया था लेकिन अपना राजनीतिक वजूद नहीं दिखा पाये थे।
यह भी पढ़े:-अक्षत कौशिक को नीट में मिली ऑल इंडिया में तीसरी व यूपी में प्रथम रैंक, बताया कैसे मिली सफलता
राजा भैया की पार्टी को मिली थी दोनों सीटों पर हार
राजा भैया ने प्रतापगढ़ व कौशांबी से अपनी पार्टी जनसत्ता दल (लोकतांत्रिक) के बैनर तले प्रत्याशी उतारे थे। प्रतापगढ़ से राजा भैया के भाई अक्षय प्रताप सिंह व कौशांबी से सपा के पूर्व सांसद रहे शैलेन्द्र कुमार पासी को उतारा था। दोनों ही क्षेत्र में पांच बार से अधिक कुंडा के विधायक रहे राजा भैया के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है लेकिन राजा भैया ने जैसे ही अपनी पार्टी बनायी थी वैसे ही जनता उनसे दूर हो गयी। प्रतापगढ़ में राजा भैया के प्रत्याशी चौथे नम्बर पर थे जबकि कौशांबी में तीसरे नम्बर पर। बड़ा सवाल है कि क्या अब राजा भैया की नयी राजनीतिक पार्टी का वजूद यूपी चुनाव 2022 तक बचा रहेगा। या एक बार फिर राजा भैया निर्दल विधायक के रुप में अपनी पारी जारी रखेंगे।
यह भी पढ़े:-NGT की सख्ती के बाद खुली नीद, अब शहर में नहीं दिखेगा कूड़ा
सपा में शामिल हो सकते हैं शिवपाल, राजा भैया की राह हुई कठिन
लोकसभा चुनाव 2019 में बसपा से गठबंधन करने के बाद भी सपा को करारी शिकस्त मिली है। सपा में शिवपाल यादव की वापसी के लिए मुलायम सिंह यादव लग गये हैं और एक-दो दिन में शिवपाल की सपा में वापसी हो सकती है। शिवपाल यादव के सपा में जाते ही उनकी पार्टी का वजूद खत्म हो जायेगा। शिवपाल यादव की घर वापसी तो हो सकती है लेकिन राजा भैया की कहानी यहां पर आकर अलग हो जाती है। राजा भैया की बसपा सुप्रीमो मायावती से राजनीतिक अदावत किसी से छिपी नहीं है। अखिलेश यादव से भी उनके संबंध पहले जैसे नहीं है। ऐसे में राजा भैया के लिए यूपी में बीजेपी, सपा, कांग्रेस व बसपा के बीच में अपनी पार्टी का वजूद बचाये रखना बेहद कठिन है। राजा भैया अब यूपी चुनाव 2022 में अपनी पार्टी से प्रत्याशी उतारने का जोखिम नहीं उठायेंगे। राजा भैया के पास दो ही विकल्प बचे हैं या तो कुंडा से निर्दल ही चुनाव लड़ते रहे। या फिर अपनी पार्टी के एकमात्र विधायक बन जाये।
यह भी पढ़े:-महिला प्रशिक्षु पुलिसकर्मियों ने लगाया छेड़छाड़ का आरोप, किया सड़क जाम

Hindi News / Varanasi / लोकसभा 2019 में हार चुके राजनीतिक रुतबा कायम करने की लड़ाई, यूपी विधानसभा चुनाव तक बचेगा पार्टी का वजूद

ट्रेंडिंग वीडियो