कांग्रेस ने लंबी जद्दोजहद के बाद कार्तिक पूर्णिमा की रात प्रदेश के नौ नगर निगमों के लिए मेयर पद के प्रत्याशियों का ऐलान किया। बता दें कि शालिनी मूलतः गाजीपुर की रहने वाली हैं और उन्होंने यहीं बीएचयू से अंग्रेजी ऑनर्स के साथ स्नातक उपाधि हासिल की। फिर लखनऊ से
फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा किया। लेकिन पारिवारिक दायित्व को पूरा करने का वक्त आया तो उन्होंने यादव परिवार के एक सांध्य दैनिक के संचाल का बीड़ा भी उठाया, वर्तमान में वह सांध्य हिंदी दैनिक की सर्वेसर्वा हैं।
ये भी पढ़ें-निकाय चुनावः राज्यसभा के पूर्व उप सभापति परिवार की बहू होंगी कांग्रेस की मेयर प्रत्याशी! दरअसल बनारस कांग्रेस ने काफी मंथन के बाद श्याम लाल यादव के छोटे बेटे अरुण यादव जो फिलहाल पार्टी में पिछड़ा वर्ग के अध्यक्ष हैं से वार्ता की और उनकी पत्नी को मेयर पद का प्रत्याशी बनाने की पेशकश की। इसे थोड़े विचार विमर्श के बाद यादव ने स्वीकार कर लिया। शालिनी यादव को टिकट देने के पीछे बनारस कांग्रेस की रणनीति यह थी कि एक तो यह गैर विवादित परिवार है, दूसरे खांटी कांग्रेसी परिवार भी है। इससे पुराने कांग्रेसियों के बीच भी अच्छा मैसेज जाएगा। पार्ट मे मेयर प्रत्याशी को लेकर कोई विवाद नहीं खड़ा होगा जैसा कि 2012 के चुनाव में हुआ था और तब कांग्रेस के घोषित प्रत्याशी के खिलाफ दो बागी प्रत्याशी भी मैदान में उतर आए थे। चुनाव परिणाम चाहे जो हो लेकिन फिलहाल कांग्रेस के पास इसके अलावा कोई विकल्प भी नहीं था जिसे भाजपा के गढ़ में सेंधमारी के लिए उतारा जाता। दूसरे यादव बिरादरी का होने के नाते शालिन के पास जातीय वोटबैंक भी ठीक ठाक हो जाएगा। इस सूरत में कांग्रेस सपा के परंपरागत वोटबैंक में भी सेंधमारी कर सकती है। बता दें कि बनारस की तीन शहरी विधानसभाओं को मिला लें तो नगर निगम सीमा में 80 हजार से ज्यादा यादव मत हैं। इस लिहाज से भी शालिनी की दावेदारी मजबूत मानी जा रही थी।
इसके अलावा शालिनी को अपने ससुर स्व. श्यामलाल यादव की साफ सुथरी राजनीतिक छवि का भी लाभ मिल सकता है। बता दें कि स्व. श्यामलाल यादव ने लखनऊ से एमए-एलएलबी कर वाराणसी में वकालत शुरू की। उन्होंने 1952 से राजनीतिक सफर शुरू किया। पहली बार 1957 में वाराणसी के मुगलसराय विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए। फिर 1967 में भारतीय क्रांति दल का गठन हुआ तो उससे चुनाव जीते और प्रदेश के विधि व कानून मंत्री बने। लेकिन ज्यादा समय तक वह कांग्रेस से अलग नहीं रह सके और 1971 में उन्होंने फिर कांग्रेस ज्वाइन कर लिया। वह 1970 से 1988 तक लगातार तीन बार राज्यसभा सदस्य रहे, 1982 में राज्यसभा के उपसभापति बने। पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में वाराणसी संसदीय सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की। इसके बाद 1986 में केंद्र में कृषि मंत्री बने। 2005 में श्यामलाल के निधन के बाद बनारस आए कांग्रेस उपाध्यक्ष
राहुल गांधी ने उनके पुत्र अरुण यादव को कांग्रेस की सक्रिय राजनीति से जोड़ा। अरुण यादव कांग्रेस के प्रदेश कमेटी में उच्च पदों पर रहे। वर्तमान में वे पिछड़ा विभाग के प्रदेश अध्यक्ष हैं।