बता दें कि 1995 से अब तक के मेयर के चार चुनावों में कांग्रेस को करारी शिकस्त मिली है। लेकिन इस बार पार्टी पूरी मुस्तैदी से इस कोशिश में लगी है कि किसी तरह से इस पद पर काबिज हुआ जाए। इसके पीछे बीजेपी के इन 22 सालों के काम काज को भी देखा जा रहा है। खास तौर पर निवर्तमान मेयर के कार्यकाल को। ऐसें कांग्रेस को लगता है कि इस बार उनके पास अच्छा मौका है जिसे वह भुना सकते हैं। ऐसे में पहले उन्होंने बनारस के प्रतिष्ठित चौरसिया परिवार पर दांव लगाया लेकिन किन्हीं कारणों से बात नहीं बनी तो अब श्याम लाल यादव के परिवार के साथ बातचीत शुरू की। वैसे कांग्रेस के लिए ये दोनों ही परिवार समर्पित परिवार हैं।
इस संबंध में जब पत्रिका ने स्व. श्यामलाल यादव के सबसे छोटे पुत्र अरुण यादव से वार्ता की तो उन्होंने हंसते हुए पार्टी के इस प्रस्ताव पर रजामंदी जताई। उन्होंने कहा कि पार्टी हित में उनसे जो हो सकेगा करने को तैयार हैं। परिवार का पुराना कांग्रेसी इतिहास रहा है। ऐसे में हमरा भी दायित्व बनाता है। उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी शालिनी यादव मूलतः गाजीपुर की रहने वाली हैं। अग्रेजी से बीए ऑनर्स के साथ उन्होंने लखनऊ से
फैशन डिजाइनिंग में डिप्लोमा किया है। फिलहाल वह एक मीडिया हाउस से जुड़ी हैं, जुड़ी क्या हैं वही इस मीजिया हाउस की सर्वे सर्वा है। इस बीच बनारस कांग्रेस निकाय संचालन समिति की ओर से भी ऐसे संकेत मिले हैं कि शालिनी को मेयर प्रत्याशी बनाने पर विचार किया जा रहा है।
वैसे अगर जातीय आंकड़ों की बात करें तो नगर निगम वाराणसी क्षेत्र में करीब ढाई लाख जायसवाल वैश्य समाज के मतदाता हैं तो सवा दो लाख के करीब मुस्लिम हैं। निगम के 90 वार्डों में से 12 वार्ड यादव बहुल हैं। तकरीबन 80 हजार यादव मतदाता हैं। ब्राह्मण, भूमिहार, कायस्थ, वैश्य को मिला लें तो करीब पांच लाख मतदाता हैं। उधर पटेल मतदाताओं की तादाद शहर में बमुश्किल 35-40 हजार है। इस जातीय गणित पर भी कांग्रेस की नजर है। कांग्रेस के रणनीतिकारों को पता है कि जब 1995 के पहले चुनाव नें बीजेपी कैंडिडेट पूर्व मंत्री ओमप्रकाश सिंह की पत्नी सरोज सिंह को सपा उम्मीदवार विमला ग्वाल कांटे की टक्कर दे सकती हैं। बीजेपी के उम्मीदवार पूर्व शिक्षा राज्यमंत्री अमर नाथ यादव मेयर बन सकते हैं तो किसी यादव प्रत्याशी को उतारना कहीं ज्यादा मुनासिब होगा।