डॉ. अजय कृष्ण चतुर्वेदी
वाराणसी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बेहद संवेदनशील मनुष्य हैं। उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं है। जैसा वह सोचते हैं वैसा ही करते हैं। कर्मयोगी हैं। यह कहना है पीएम के कविता संग्रह च्आँख आ धन्यम् छेज् का संस्कृत अनुवाद करने वाली विदुषी राजलक्ष्मी श्रीनिवासन का। पत्रिका से बातचीत में उन्होंने रविवार को ये बातें कहीं।
2009 में पीएम ने किया अनुवाद का आग्रह
राजलक्ष्मी ने पत्रिका को बताया कि प्रधानमंत्री ने अपने कविता संग्रह का लेखन भले 1986 में किया हो पर उन्होंने मुझसे संस्कृत अनुवाद के लिए 2009 में आग्रह किया। वह कहती हैं कि मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री चाहते थे कि उनकी रचना को संस्कृत के विद्वान भी पढ़ें। जानें कि नरेंद्र मोदी क्या सोचते हैं, क्या हैं उनके खयालात। मैं जितनी बार उनसे मिली, जितनी बार उन्हें जाना वह बेहद संवेदनशील, कोमल हृदय के धनी और प्रकृति प्रेमी इंसान है। दूसरों का दर्द वह आसानी से समझ पाते हैं। इसीलिए पहले मुख्यमंत्री रहते भी उन्होंने हर दीन-दुःखी के हित में काम किया। अब प्रधानमंत्री बन कर वह दुखियारों की मदद कर रहे हैं। वह बेहद सच्चे इंसान हैं।
गुजराती भाषा को समझने में लगा समय
श्रीनिवासन ने बताया कि जब 2009 में पीएम ने मुझसे अपने कविता संग्रह के अनुवाद का आग्रह किया तो मुझे लगा कि क्या ये मेरे लिए आसान होगा। कारण ये कविता गुजराती भाषा में थी। ऐसे में मैने पहले गुजराती भाषा को जानने की कोशिश की। इस काम में मेरी बेटी जयंती रवि ने भी काफी मदद की। दरअसल मैं चाहती थी कि मोदी जी के भाव हूबहू अनुवाद में भी परिलक्षित हों। अब मुझे लगता है कि मैं ऐसा कर पाई हूं। प्रधानमंत्री के कविता संग्रह आंख आ धन्यम् छे के संस्कृत रूपांतरण नयनम् इदम् धन्यम् में कुल 67 कविताएं हैं। पूरा संग्रह 130 पेज का है।
हर पंक्ति में है जीवंतता
प्रधानमंत्री के कविता की हर पंक्ति, हर वाक्य में है जीवंतता। प्रकृति प्रेम की झलक है तो मानुष का दर्द भी समाया है। कहीं-कहीं वह आत्म चिंतन से करते नजर आते हैं। सबसे बड़ी बात कि ये सब ऐसे सहज भाव से होता जा रहा है जैसे निश्छल नदी का प्रवाह हो। वह खुद से कदम कदम पर सवाल भी करते हैं। फिर उसका जवाब भी देते हैं। इसे पढ़ कर लगता है इस तरह की लाइनें हर कोई नहीं लिख सकता। वही लिख सकता है जो वास्तव में संजीदा हो।
वाल्मीकि आनंद रामायण का तमिल अनुवाद करने में रहा है योगदान
संस्कृत के साथ ही तमिल भाषा पर भी पूरा अधिकार रखने वाली श्रीनिवासन की बेटी जयंती रवि भी उन्हीं के नक्शे कदम पर चल रही हैं। हालांकि वह आईएएस अफसर हैं लेकिन जयंती ने मां के साथ मिल कर वाल्मीकि आनंद रामायण का तमिल में अनुवाद किया है। आनंद रामायण संस्कृत में है। इसमें सात कांड हैं। जयंती ने बताया कि उन्हें और उनकी मां को अनुवाद करने में दो साल लगे।
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