पार्श्व एकादशी को ही वामन एकादशी भी कहा जाता है। क्योंकि इस दिन विशेष रूप से श्रीहरि के अवतार ‘वामन’ की पूजा की जाती है। वामन देव भगवान विष्णु के दस अवतारों में से एक अवतार हैं, जिनकी पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
इस एकादशी पर वामन देव की पूजा करने से मनुष्य के पापों का नाश होता है। उसके जीवन से सभी बुरे कर्म नष्ट हो जाते हैं। स्वयं भगवान विष्णु के अवतार वामन देव भी संसार से बुरे कर्मों का सर्वनाश करने के लिए जाने जाते हैं।
एक पौराणिक आख्यान के अनुसार त्रेतायुग में बलि नामक एक दानव था। परन्तु दानव होते हुए भी वह भक्त, दानी, सत्यवादी तथा ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। साथ ही वह सदैव ही यज्ञ और तप आदि किया करता था।
वह अपनी आस्था में इतना निपुण था कि विभिन्न देव उसे आशीर्वाद देने से पीछे नहीं हटते थे। धीरे-धीरे उसके तप की अग्नि इतनी बढ़ गई और अपनी भक्ति के प्रभाव से वह इतना बलवान होने लगा कि वह स्वर्ग में इन्द्र के स्थान पर राज्य करने की कोशिश करने लगा।
उसकी शक्ति देख इन्द्र तथा अन्य देवता इस बात को सहन न कर सके और सभी श्रीहरि के पास जाकर प्रार्थना करने लगे। देवों की समस्या का समाधान निकालते हुए भगवान श्रीविष्णु ने वामन का रूप धारण कर पृथ्वी लोक पर जाने का विचार बनाया।
वे वामन रूप में राजा बलि के सामने पहुंचे और उनसे याचना की, ‘हे राजन, तुम मुझे तीन पग भूमि दे दो, इससे तुम्हें तीन लोक दान का फल प्राप्त होगा’। राजा काफी दयालु थे, उन्होंने सोचा कि एक छोटा सा बालक कितनी जमीन ले लेगा, इसलिए उन्होंने वामन का आग्रह स्वीकार किया।
वामन देव ने अपना आकार बड़ा कर लिया और कहा कि आप तीन पग जमीन ले सकते हैं, लेकिन राजा बलि श्रीहरि को पहचान ना सके। वामन तो श्रीहरि के अवतार थे, आज्ञा पाते ही उन्होंने अपना आकार बढ़ाया, और वे इतने बड़े हो गए कि शायद पृथ्वी भी छोटी पड़ गई।
यदि आप इस दिन व्रत एवं पूजन करने का विचार बना रहे हैं तो याद रखें कि इस दिन चावल और दही सहित चांदी का दान करने का विशेष विधि-विधान है। इसके अलावा तांबा या उससे बनी कोई भी वस्तु दान कर सकते हैं। साथ ही रात्रि को जागरण अवश्य करना चाहिए।
वैसे तो वामन एकादशी की पूजा करने के लिए कोई कठोर नियम नहीं है। आप भगवान वामन का नाम लेकर श्रीहरि का कोई भी मंत्र उचारण कर सकते हैं। नहीं तो निम्नलिखित मंत्र पढ़ें: देवेश्चराय देवाय, देव संभूति कारिणे। प्रभवे सर्व देवानां वामनाय नमो नम:।।