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वाराणसी

नाराज हुआ रिहंद, तो आधे भारत में हो जाएगा अँधेरा  

-जहरीले पानी और कचड़े  से रिहंद बाँध की हालत चिंताजनक 

वाराणसीMar 16, 2016 / 05:37 pm

Awesh Tiwary

over polluted rihand dam

over polluted rihand dam

-आवेश तिवारी
इधर गर्मी का पारा चढ़ रहा है उधर रिहंद का कंठ सूख रहा है।छत्तीसगढ़ के गर्भ से निकलने वाली रेणुका नदी पर बनाये गए रिहंद बांध जलाशय,जिसे गोविन्द वल्लभ पंत जलाशय भी कहते हैं,आने वाले समय में आधे भारत के लिए गंभीर ऊर्जा संकट की वजह बन सकता है।दुर्भाग्य यह है कि जिन बिजलीघरों के कारण रिहंद का पानी विषाक्त हुआ अब उन्हीं बिजलीघरों के लिए रिहंद का विषाक्त पानी भी सूखने लगा है।लगभग 20,000 मेगावाट क्षमता के बिजलीघरों के लिए प्राणवायु कहे जाने वाले रिहंद बाँध की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि अगर आगामी मानसून की स्थिति में थोडा सा भी परिवर्तन हुआ,तो रिहंद के पानी पर निर्भर बिजलीघरों में उत्पादन ठप्प हो सकता है।
रिहंद बाँध यानि कि पंडित गोविन्द वल्लभपंत सागर जलाशय का स्तर लगातार घट रहा है बरसात तक निर्बाध उत्पादन के लिए न्यूनतम जलस्तर को बनाये रखने के लिए जरुरी है कि बाँध के जल को संरक्षित रखा जाए ताकि एन.टी.पी.सी. और राज्य विद्युत् गृहों को पानी मिल सके लेकिन उत्तर प्रदेश में जारी गंभीर बिजली संकट और उससे जुड़ी जल विद्युत् इकाइयों को चलने की मज़बूरी ,रिहंद के जल को कितने दिनों तक सुरक्षित रख पायेगी कहना कठिन है। गौरतलब है कि न्यूनतम जलस्तर के नीचे जाने पर बिजलीघरों की कूलिंग प्रणाली हांफने लगती है। अवर्षण की निरंतर मार झेल रहे रिहंद की वजह से पिछले पांच वर्षों से ग्रीष्मकाल में ताप विद्युत इकाइयों को चलाने में दिक्कतें आ रही थी। हैरानी ये होती है कि केंद्र और प्रदेश की हुकूमतें उर्जा समस्या और ख़ास तौर से रिहंद के के प्रति संवेदनशील नहीं हैं। रिहंद की मौजूदा स्थिति प्रदूषण की वजह से है रिहंद बाँध अपना 120 साल की उम्र 60 साल में ही पूरा कर चुका है, बाँध की तली में जमे कचड़े के अपार ढेर की वजह से ही उसके न्यूनतम जलस्तर को 820 से घटाकर 830 फिर करना पड़ा वहीँ उसकी जलग्रहण के अधिकतम स्तर को 882 से घटाकर 870 फिट कर दिया गया।

रिहंद बाँध की निगरानी में लगी स्ट्रक्चर बीहैवियर मॉनिटरिंग कमेटी समेत तमाम एजेंसियां मौजूदा स्थिति के लिए बाँध के मौजूदा प्रदूषण को ही जिम्मेदार मानती है। अभी कुछ दिनों पूर्व जब रिहंद के जल को पीने से लगभग दो दर्जन लोगों की मौत हुई तो स्वास्थ्य विभाग ने जलाशय के जल को विषाक्त घोषित कर दिया जांच में पाया गया कि 1080 वर्गमील में फैला अमृतमय जल अब मानव और मवेशियों ,जलचर नभचर के लिए उपयोगी नहीं रह गया. रिहंद बाँध के विषाक्त जल का भयंकर प्रभाव इस इलाके की पारिस्थितकी पर भी पड़ रहा है विषैले जल से पूरे इलाके का भूगर्भ जल भी विषाक्त होने का खतरा है। रिहंद सागर का पानी ओबरा बाँध की विशाल झील में जाता है ,यहाँ से यह पानी ओबरा बिजलीघर की राख ,जले हुए तेल ,खदानों और क्रशरों का उत्सर्जन लेकर रेणुका और सोन नदी दोनों को विषैला बनता है। इस प्रदूषित पानी ने रिहंद ओबरा की सुनहरी नीली काया को स्याह कर डाला है. जमीन का पानी तो विषैला था ही पिछले कुछ वर्षों से तेज़ाब की वर्षा भी हो रही है।बिजलीघरों की शुद्धिकरण प्रणाली अविश्वसनीय है। राख बाँध विफल है। जिन बिजलीघरों ने इस बाँध को दूषित किया वही अब इसके कोप का शिकार हो रहे हैं।
रिहंद बाँध के सम्बंध में एक तथ्य ये है कि इसका आकार कटोरे कि तरह है ऐसे में इसके जलस्तर में बढ़ोत्तरी की अपेक्षा ,जलस्तर के घटने कीदर ज्यादा तेज होती है।मौजूदा समय में बाँध से जल के वाष्पीकरण की दर लगभग .2 फीट प्रतिदिन है जबकि मई तक यह दर .02 फीट प्रतिदिन तक हो जाती है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर तात्कालिक तौर पर बाँध के जलस्तर को विशेष निगरानी में नहीं रखा गया और ओबरा एवं रिहंद जल विद्युत् गृहों से उत्पादन को सीमित नहीं किया गया ,तो आने वाले दिन समूचे उत्तर भारत के साथ – साथ नेशनल ग्रिड के लिए अभूतपूर्व संकट की वजह बन सकते हैं. स्थिति की गंभीरता को स्वीकार करते हुए सिंचाई विभाग के अभियंता कहते हैं ‘हम विवश हैं बाँध में जमे कचड़े की वजह से एक निश्चित लेवल तक ही ताप विद्युत् संयंत्रों को कुलिंग वाटर की सप्लाई दी जा सकती है ।ऊँचाई में स्थित विद्युतगृहों में तो अब चेतावनी बिंदु से पूर्व ही कचरा जाने लगता है. हम प्रकृति और प्रदूषण के सामने कुछ नहीं कर सकते’।

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