गुजरात के तत्कालीन सीएम नरेन्द्र मोदी की सुनामी में भी मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ सीट पर चुनाव जीत कर अपनी ताकत दिखायी थी। मुलायम सिंह का सामना बीजेपी के बाहुबली नेता रमाकांत यादव से थे। जबकि बसपा प्रत्याशी ने भी इस सीट पर अच्छा प्रदर्शन किया था इसके बाद भी सपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष ने चुनाव जीता था। इसके बाद अखिलेश यादव ने इस सीट से चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। सपा का मायावती की पार्टी बसपा से गठबंधन है जबकि राहुल गांधी व प्रियंका गांधी की पार्टी इस सीट पर प्रत्याशी नहीं उतराने की तैयारी की है। ऐसे में साफ हो जाता हे कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी व सपा के बीच सीधा मुकाबला होगा। सपा के कद्दावर नेता अखिलेश यादव की अभी तक इस सीट पर राह आसान मानी जा रही थी लेकिन जिस तरह से आजमगढ़ के लोगों में निरहुआ के प्रति दीवानगी दिखी है वह सपा के लिए खतरे की घंटी है। बीजेपी प्रत्याशी निरहुआ यादव व दलित वोट बैंक में सेंधमारी करने में कामयाब हो जाते हैं तो सपा की यह सीट फंस भी सकती है। इसके अतिरिक्त पीएम नरेन्द्र मोदी की जनसभा व अमित शाह की रणनीति भी सफल होती है तो भी सपा की राह कठिन हो जायेगी।
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आजमगढ़ में दलित, यादव व मुस्लिम वोटरों को जोड़ दिया जाये तो उनका प्रतिशत ४९ हो जायेगा। जबकि इसके अतिरिक्त वोटरों का प्रतिशत ५१ है। अखिलेश यादव को यादव, मुस्लिम व दलितो का साथ मिला तो सपा के लिए लड़ाई बेहद आसान हो जायेगी। यदि सपा व बसपा गठबंधन की ताकत जमीन पर नहीं दिखायी दी और दलितो का बड़ा वोट प्रतिशत बीजेपी की तरफ जाता है तो कुछ भी हो सकता है। फिलहाल यह कहा जा सकता है कि जिस तरह से निरहुआ ने अपनी ताकत दिखायी है उससे साफ हो जाता है कि इस सीट पर लड़ाई बेहद दिलचस्प होने वाली है।
यादव:-3.5 लाख, मुस्लिम:- 3.0 लाख, दलित:- 2.5 लाख, राजपूत:- 1.5लाख, ब्राह्मण:- 1.0लाख, राजभर:-1 लाख, वैश्य- 1लाख के अतिरिक्त अन्य जाति को मिला कर दो लाख से अधिक वोटर हैं।
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