काशी में है उत्तर भारत का इकलौता मां कामाख्या का शक्तिपीठ, 22 जून से शुरू हो रहा है खास योग पर्व, करें 108 परिक्रमा पूर्ण होगी मनोकामना
काशी में है उत्तर भारत का इकलौता मां कामाख्या का शक्तिपीठ। मान्यता है कि त्रेता युग में हुई थी मां कामाख्या के इस शक्तिपीठ की स्थापना। खुद मां कामाख्या के आदेश पर धर्मराज धनंजय ने स्थापित कराया था इस मंदिर को। मां कामाख्या का श्री अंबुवाची योग पर्व आरंभ हो रहा है 22 जून से जो 26 जून तक चलेगा। मान्यता है कि इस अविधि में मां की 108 परिक्रमा करने से पूर्ण होते हैं सारे मनोरथ।
डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदीवाराणसी. काशी को यूं ही धर्म नगरी की मान्यता हासिल नहीं है। बाबा विश्वनाथ तो यहां हैं ही या यूं कहें कि यह नगरी उन्होंने ही बसाई है। लेकिन यहां एक से बढ कर एक अद्वितीय व अद्भुत मंदिर व देवी-देवताओं के विग्रह भी हैं। उन्हीं में एक है मां कामाख्या का शक्तिपीठ। कहा जाता है कि काशी में इस शक्तिपीठ की स्थापना त्रेता युग में हुई। मां के शक्तिपीठ के प्रधान पुजारी बताते हैं कि मान्यता है कि भगवान श्री राम और श्री कृष्ण से भी पुराना है यह मंदिर। यह जागृत मंदिर है जहां पूरे भक्ति भाव से पूजन-अर्चन करने से हर मन्नत पूरी होती है। वैसे मां के अंबुवाची योग पर्व के दौरान मां की 108 बार परिक्रमा करने वाले की हर कामना पूर्ण होती है।
मातृ श्री का विग्रह श्री महामुद्रा यंत्र के रूप में है स्थापित मंदिर के प्रधान पुजारी देवेंद्र पुरी ने पत्रिका से खास बातचीत में बताया कि काशी में श्री कामाख्या मंदिर स्थापित होने का उद्धरण भविष्य पुराण में भी मिलता है। उन्होंने बताया कि 52 शक्तिपीठों में से एक श्री कामरूप कामाख्या देवी मंदिर जो नील पर्वत पर आसाम-गोहाटी में स्थित है उनका प्रतिरूप ही काशी में स्थित श्री कामाख्या देवी मंदिर है। मंदिर में मातृ श्री का विग्रह श्री महामुद्रा यंत्र के रूप में स्थापित है, इसलिए यह सिद्ध यंत्र पीठ है। कामाख्या देवी जी तंत्र की देवी हैं।
श्री अम्बुवाची योग पर्व में 108 परिक्रमा का है विशेष महत्व श्री कामाख्या देवी का मुख्य पर्व श्री अम्बुवाची योग पर्व है। इसमें मातृ श्री के गर्भगृह के पट तीन दिन के लिए बंद हो जाते हैं। पूजा-अर्चना भी बंद रहती है। गर्भगृह के पट्ट बंद होने से पूर्व श्री महामुद्रा यंत्र पर वस्त्र चढाए जाते हैं जो गर्भगृह के पट्ट खुलने के बाद प्रसाद रूप में भक्तों के बीच वितरित किया जाता है। तीन दिनों के पश्चात गर्भगृह का पट्ट खोले जाते हैं और श्री महामुद्रा यंत्र का महाभिषक और वार्षिक श्री महामुद्रा यंत्र के दर्शऩ होते हैं। यह पर्व हर वर्ष जून में तिथि अनुसार आद्रा नक्षत्र में मनाया जाता है। इस पर्व में 108 परिक्रमा का विशेष महत्व है। पूजित लाल वस्त्र एवं अभिषेक का पवित्र जल धार्मिक क्रियाओं, त्रांत्रिक पूजा और दुःखों के निवारण में अत्यंत उपयोगी है। प्रधान पुजारी ने बताया कि इस बार ये अम्बुवाची योग पर्व 22 से 26 जून तक चलेगा। इसके तहत 22 जून बुधवार की रात 8.20 बजे से योग पर्व आरंभ होगा जो 26 जून रविवार की दोपहर 1.30 बजे तक रहेगा। उसके बाद तीन जुलाई रविवार को अम्बुवाची पर्व के दौरान पूजित लाल वस्त्र व जल वितरण होगा।
कामाख्या तंत्र के अनुसार योनिमात्र शरीराय कुंजवासिनी कामदा। रजोस्वला महातेजा कामाक्षी ध्येयताम् सदा।। गर्भगृह में हैं ये विग्रह मातृ श्री के गर्भगृह के अंदर काशी के अष्ट भैरव में से एक श्री क्रोधन भैरव, श्री भद्रकाली, श्री हनुमान जी, श्री चौसठ योगिनी जी का विग्रह स्थापित है। मंदिर में श्री धृष्णमेश्वर ज्योर्तिलिंग, श्री धनंजय कूप, श्री प्रतगिरा देवी, श्री जीवित समाधइ, श्री अखंड धूा आदि देवता विराजमान हैं।
यूं बना ये मंदिर प्रधान पुजारी ने बताया कि इस मंदिर के बारे में कुछ लिखित है तो ज्यादातर अलिखित है। मान्यता है कि प्राचीन काल में एक गरीब ब्राह्णण हुए थे, उनकी हालत ज्यादा खराब हो गई, लेकिन सुधरने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा था। कई ऋषियों-मुनियों से पूछा पर कोई रास्ता नहीं निकला। वह काफी रुग्ण भी हो चले थे। ऐसे में वह उड़ीसा गए तो देखा कि कुछ महिलाएं एक स्थान पर बैठ कर पूजा में लीन थीं। उन्होंने महिलाओं से पूछा तो उन्होंने बताया कि पूर्व जन्म में अन्न का अपमान करने से ये हालत हुई है। लिहाजा आप माता रानी का 16 दिन अनुष्ठान करें। इससे अवश्य लाभ होगा। उन्होने वैसा ही किया जिसका परिणाम यह निकला कि वह कुछ ही दिनों में न केवल वैभवशाली हुए बल्कि राजा तक बन गए। उसी दौरान उन्होंने दूसरा विवाह किया। लेकिन उनकी दूसरी पत्नी ने ब्राह्मण देव के हाथ में बंधे उस धागे को पहली पत्नी का जादू-टोना समझ कर उतार कर फेंक दिया। जिस रोज वह धागा फेंका गया उसके बाद से वह ब्राह्मण देव पुनः गरीब हो गए। ऐसे में वह दोबार उड़ीसा गए पर इस बार महिलाएं नहीं मिलीं। हां, वहां का एक कुंआं जरूर मिला जिसके किनारे वो महिलाएं पूजा करती मिली। ऐसे में ब्राह्मण देव उस कुएं में जान देने के निमित्त कूद गए। पर ये क्या, नीचे जा कर देखा कि वहां एक बड़ा बागीचा है, बीच में आकर्षक झूले पर तेजस्वी, देदिप्यमान महिला झूला झूल रही थीं। वह उस देवी स्वरूपा महिला के पास जाने को इच्छुक हुए तो परिचारिकाओं ने रोका मगर देवी ने उन्हें बुलाया। ब्राह्मण ने जब सारी बात बताई तो देवी ने कहा पहली बार की पूजा में जो धागा मिला था उसे फेंकने से ऐसा हुआ है। अब एक उपाय है काशी जा कर मां अन्नपूर्णा मंदिर का निर्माण कराएं। वह काशी आए और काशी विश्वनाथ मंदिर के समीप के अन्नपूर्णा मंदिर का निर्माण कराया। प्रधान पुजारी ने बताया कि वह ब्राह्मण देव और कोई नहीं बल्कि धनंजय महाराज थे।
महाराज धनंजय ने स्थापित कराया यह मंदिर उन्होंने बताया कि उन्हीं धनंजय महाराज ने एक और मंदिर के निर्माण की सोची वह भी ठीक वैसा ही जैसा उन्होंने कुएं के भीतर देखा था। आकर्षक बागीचा और उसके बीच में माता का वो तेजस्वी स्वरूप वाला मंदिर। इसके लिए उन्होंने जिस बागीचे को चुना वह यही इलाका है, यहां उन्होंने कामाख्या पीठ की स्थापना की। उसके बाद ही पूरे इलाके का नाम कमच्छा पड़ा। प्रधान पुजारी पुरी ने बताया कि यह उत्तर भारत का इकलौता मंदिर है जहां मां का यंत्र स्वरूप स्थापित है। ऐसा केवल उड़ीसा के मूल कामाख्या मंदिर में ही है। उत्तर भारत के गहमर में कामाख्या मां का मंदिर है पर वहां मूर्ति है यंत्र पीठ नहीं।
मंदिर परिसर में है मां पार्वती और गणेश जी का दुर्लभ विग्रह इस परिसर में मां पार्वती की वह प्रतिमा भी है जिनकी गोद में प्रथमेश श्री गणेश बैठे हैं, यह अलौकिक मूर्ति और कहीं नहीं मिलेगी क्योंकि भगवान श्री गणेश का वह विग्रह तब का है जब भगवान शंकर ने उनका गला काट दिया था।
अगस्त्य ऋषि ने भगवान राम और युधिष्ठिर को मां की पूजा का दिया था निर्देश बताया कि यह मंदिर विलक्षण है। कहा कि वनवास के दौरान अगस्त्य ऋषि ने भगवान श्री राम को और युधिष्ठर को श्रीकृष्ण ने इस मंदिर की विशेषता बताई थी और मां की पूजा करने को कहा था। काशी के तमाम विशिष्ट मंदिरो में यह एक है।
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