रथयात्रा में लगा लक्खा मेला काशी के लाखहा मेले में शुमार तीन दिवसीय रथयात्रा मेले का आज शुभारम्भ हो गया। भक्त देर रात से ही भगवान जगन्नाथ के दर्शन को आतुर दिखे। परंपरागत तरीके से बेनी के बगीचे में आधी रात भगवान जगन्नाथ, भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा की मंगला आरती की गई। इसके बाद भगवान जगन्नाथ, बलदाऊ और सुभद्रा की प्रतिमा को रथ पर विराजमान किया गया। यहां भी महाआरती के बाद रथयात्रा मेला शुरू हो गया।
तीन दिवसीय मेले में उमड़ेंगे श्रद्धालु मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष दीपक शापुरी ने बताया कि जगन्नाथ पुरी को छोड़कर आए वहां के मुख्य पुजारी तेजोनिधि ब्रह्मचारी ने 1790 में काशी में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया। इसके 12 साल बाद रथ यात्रा मेले की शुरुआत कराई थी। 1802 में शुरू हुए रथयात्रा मेले का यह 221वां वर्ष है। इस मेले में पूर्वांचल सहित बिहार के श्रद्धालु आते हैं। हर दिन, हर समय यहां तीन दिनों तक लाखों श्रद्धालु की भीड़ होती है।
काशी में पालकी में करते हैं भगवान नगर भ्रमण दीपक शापुरी ने बताया कि काशी और पूरी की जगन्नाथ रथयात्रा में सिर्फ एक फर्क है। ओडिशा के पुरी रथयात्रा मेले में रथ को खींचा जाता है और भगवान जगन्नाथ उसपर शहर भ्रमण करते हैं, पर काशी में भगवान् एक दिन पहले पालकी पर भाई बलदाऊ और बहन सुभद्रा के साथ शहर भ्रमण कर लेते हैं। इस भ्रमण के बाद तीन दिवसीय मेले में रथ पर सवार होते हैं पर यह रथ कहीं ले जाया नहीं जाता और रथयात्रा मेला स्थल पर ही रहता है।
क्या है लक्खा मेला धर्म की नगरी काशी में त्योहारों का बहुत महत्त्व है। आषाढ़ माह से कार्तिक माह तक काशी में कई पारंपरिक मेले का आयोजन होता है। काशी में कई मेले हैं जिनमे हर समय एक लाख या उससे अधिक लोग मौजूद रहते हैं। ऐसे मेले को काशी में लक्खा मेले में शुमार किया जाता है। काशी में त्यौहार की शुरुआत रथयात्रा मेले से शुरू होती है जो लक्खा मेले में शुमार है। इसके बाद पड़ने वाले सोरहिया मेला, लोलार्क षष्ठी, नाटीइमली का भरत मिलाप, चेतगंज की नक्कटैया और तुलसी घाट की नाग नथैया के साथ ही कार्तिक पूर्णिमा की देव दीपावली भी लखा मेले में शुमार है।