इसके अलावा मुकंदीलाल, गोविंदचरणकर, राजकुमार सिंह, रामकृष्ण खत्री को 10-10 साल और सुरेशचंद्र भट्टाचार्य और विष्णुशरण दुब्लिश को 7-7 साल और प्रेमकिशन खन्ना व रामदुलारे त्रिवेदी को 5-5 साल की सजा सुनाई गई। इस केस में कुंदन लाल और आजाद को पुलिस कभी नहीं पकड़ पाई।
भगत सिंह तब जेल में थे। एक दिन उन्होंने पंजाबी पत्रिका किरती में काकोरी एक्शन के बारे में लिखा, “साथी क्रांतिकारियों को डर था कि अशफाक अंग्रेजी हुकूमत से माफी मांग लेंगे, क्योंकि उनके ऊपर परिवार का दबाव था। मजिस्ट्रेट तजस्सुक हुसैन को फैजाबाद भेजा गया। वह अशफाक को माफी मांगने के लिए कहते रहे, पर अशफाक नहीं माने। अशफाक के चेहरे पर फांसी का कोई भय नहीं था।”
काशी के इस विद्यालय में होता था क्रांतिकारियों का जमावड़ा
काकोरी कांड को यहीं दी गयी रूपरेखा बंगाली टोला इंटर कालेज की जिसे बंगीय समाज ने साल 1854 में बनाया और 1857 की क्रान्ति तक यह विद्यालय क्रांतिकारियों की गुपचुप मीटिंग का गढ़ बन गया। इसी बंगाली टोला इंटर कालेज के एक कमरे में रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद ने अपने साथियों के साथ काकोरी की रणनीति बनाई थी।
काकोरी कांड की प्लानिंग का केंद्र था बंगाली टोला कालेज
उपप्राचार्य ने बताया कि इस विद्यालय का सबसे बड़ा योगदान काकोरी से है क्योंकि काकोरी की रणनीति यहं चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खान, भगत सिंह सभी की बैठकें इसी जगह होती थी, काकोरी कांड यहां से परवाज पाया और उसे 9 अगस्त को अंजाम दिया गया और क्रांतिकारियों ने खजाना लूट लिया जिसमे उस समय जर्मन मेड चार पिस्टल का सहारा लिया गया था। यहां के दो छात्र शचीन्द्र नाथ सान्याल को काकोरी षणयंत्र में आजीवन निर्वासन और सुरेश चंद्र भट्टाचार्य को 7 वर्ष सश्रम कारवास की सजा सुनाई गयी थी।