यह भी पढ़े:-रावण को बताया भगवान विष्णु का द्वारपाल और कर डाली PhD, मिली डिग्री
डा.अजय कुमार ने बताया कि राक्षसों को हराने के लिए जब देवताओं ने समुद्द्र मंथन किया था तो भगवना धन्वंतरि ही हाथ में अमृत कलश लेकर निकले थे। समुद्र से निकलने के बाद भगवान धन्वंतरि ने भगवान विष्णु से कहा कि लोक में मेरा स्थान और भाग का निर्धारण करे दे। इस पर भगवान विष्णु ने कहा कि देवताओं में यज्ञ विभाग का पहले ही निर्धारण हो चुका है तुम देवता नहीं हो, इसलिए अब कुछ करना संभव नहीं है। भगवान विष्णु ने कहा कि अगले जन्म में तुम्हे सिद्धिया प्राप्त होगी और तुम लोक में प्रख्यात होंगे। इसी शरीर में देवत्व प्राप्त करोगे और वैद्य तुम्हारी पूजा करेंगे। द्वापर में तुम्हारा फिर से जन्म होगा और आयुर्वेद विभाग की स्थापना करोगे। इसके बाद काशीराज धन्व की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान धन्वंतरि ने उनके पुत्र के रुप में पुन:जन्म लिया था और नये जन्म में भी धन्वंतरि नाम ही धारण किया। आयुर्वेद विभाग की स्थापना करने के साथ ही लोगों को अरोग्य दिया। भगवान धन्वंतरि के पुत्र केतुमान व भीमरथ व इनके पुत्र दिवोदास ने लम्बे समय तक काशी पर शासन किया था।
यह भी पढ़े:-राजनाथ सिंह ने नीरव मोदी व मेहुल चौकसी को लेकर किया बड़ा खुलासा
ब्रह्माजी ने एक सहस्त्र अध्याय व एक लाख श्लोक वाले आयुर्वेदक की रचना की थी। आयुर्वेद को अश्विनी कुमारों ने सीख कर भगवान इंद्र की शिक्षा दी थी। इंद्र ने धन्वंतरि को आयुर्वेद में कुशल बनाया। धन्वंतरि से पहले आयुर्वेद को गुप्त रखा गया था इस विद्या को विश्वामित्र के पुत्र सुश्रुत ने भी सीखा और दुनिया की पहली शल्य चिकित्सा की थी। बनारस में विश्व का प्रथम शल्य चिकित्सा का विद्यालय स्थापित किया गया तो सुश्रुत को विद्यालय का प्रधानाचार्य बनाया गया था। समुद्र मंथन के बाद शिव ने जब हलाहल ग्रहण किया था तो धन्वंतरि ने भगवान शिव को अमृत प्रदान किया था और अमृत की कुछ बूंदें काशी नगरी में गिर गयी थी इसलिए शिव की काशी को अमर नगरी माना जाता है।
यह भी पढ़े:पुलिस हिरासत में ब्लेड से काटी थी नस, चिकित्सक ने लगाया चोट नहीं लगने की रिपोर्ट, कोर्ट ने विवेचक के साथ किया तलब