पिता की हत्या का बदला लेने के लिए उठाए हथियार
80 के दशक में वाराणसी के धौरहरा गांव में रहने वाले ब्रजेश सिंह बीएससी कर रहे थे। सिंचाई विभाग में कर्मचारी में रविंद्र नाथ सिंह का गांव के पांचू से जमीन को लेकर झगड़ा हुआ और उनकी हत्या कर दी गई। 1984 में पिता की हत्या के बाद ब्रजेश ने पढ़ाई छोड़ी और हथियार उठा लिए। ब्रजेश की उम्र तब 20-21 साल की रही होगी।
साल 1985 में ब्रजेश सिंह एक शॉल लेकर गांव के अपने दुश्मन पांचू के घर पहुंचे। पांचू के पिता घर के बाहर ही बैठे थे। झुककर उनके पैर छुए और शॉल ओढ़ाया। अगले ही पल गन निकाली और पांचू के पिता को छलनी कर दिया। ये हत्या करने का एक अलग ही स्टाइल था, जो उस वक्त 20-21 साल के ब्रजेश ने अपनाया था। पांचू के पिता की हत्या कर ब्रजेश सिंह फरार हो गया।
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1986 में चंदौली जिले के सिकरौरा गांव में एक भयंकर हत्याकांड हुआ। गांव के पूर्व प्रधान रामचंद्र यादव समेत 6 लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी गई। हत्याकांड में ब्रजेश का नाम आया और उसको पुलिस ने पकड़ भी लिया। ब्रजेश को गोली लगी थी, ऐसे में इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती कराया। ब्रजेश ठीक होता और पुलिस उसे जेल भेजती, इससे पहले ही वो अस्पताल से फरार हो गया।कचहरी में एके-47 लेकर की हत्या
अस्पताल से फरार ब्रजेश ने इसके बाद उस वारदात को अंजाम दिया, जिसने पूर्वांचल ही नहीं पूरे यूपी में सनसनी फैला दी। ब्रजेश पर अपने गांव के प्रधान रघुनाथ की हत्या का आरोप लगा। रघुनाथ पर भरी कचहरी में AK-47 से गोलियां बरसाई गईं। कचहरी में एके-47 के इस्तेमाल ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया।
मुख्तार से दुश्मनी
90 के दशक में ब्रजेश पूर्वांचल का एकमात्र डॉन बनने की तरफ बढ़ रहा था। इसमें उसके सामने आया मऊ विधायक मुख्तार अंसारी। मुख्तार अंसारी और ब्रजेश के बीच दुश्मनी शुरू हुई। दोनों के गैंग के बीच कई हत्याएं हुईं, जिसमें दोनों के कई करीबी मारे गए।
इसके बाद आया साल 2001, जब ब्रजेश और मुख्तार हथियारों के साथ आमने-सामने आ गए। गाजीपुर के उसरी चट्टी मामले में मुख्तार अंसारी के काफिले पर हमला हुआ। हमले का आरोप लगा ब्रजेश सिंह पर। ब्रजेश खुद हमला करने में शामिल बताया गया। हमले में मुख्तार बच गया और ब्रजेश सिंह इस घटना के बाद पूरी तरह से अंडरग्राउंड हो गया।
ब्रजेश सिंह पर मकोका, टाडा, गैंगस्टर एक्ट, हत्या, अपहरण, हत्या का प्रयास, हत्या की साजिश जैसे तमाम मुकदमे दर्ज हो चुके थे। 22 से ब्रजेश फरार था। ऐसे में पुलिस ने उस पर 5 लाख का इनाम घोषित कर दिया।
22 साल बाद गिरफ्तारी
1985 में हत्यारोपी बना ब्रजेश सिंह अगले दो दशक में पूर्वांचल का डॉन बन गया। उसके नाम तमाम मुकदमे दर्ज होते रहे। परिवार का राजनीति में दबदबा बढ़ता रहा। इस सबके बावजूद वो पुलिस के लिए फरार ही रहा।
ब्रजेश के खिलाफ कोई गवाह नहीं टिका, मिली जमानत
2008 में गिरफ्तार हुए ब्रजेश के खिलाफ 30 से ज्यादा संगीन मामले दर्ज थे। ब्रजेश के खिलाफ हत्या के मामले हों या दूसरे केस, ज्यादातर में गवाह पलट गए। धीरे-धीरे मुकदमों में ब्रजेश को राहत मिलती रही। इसका नतीजा ये रहा कि बीते साल 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट से बृजेश सिंह को 13 साल जेल में गुजारने के बाद बेल मिल गई।
25 साल से वाराणसी MLC सीट पर परिवार का कब्जा, भतीजा चौथी बार विधायक
ब्रजेश के परिवार का 25 साल से वाराणसी की MLC सीट पर कब्जा है। ब्रजेश के बड़े भाई उदयभान सिंह 1998 और 2004 में भाजपा के टिकट पर इस सीट से MLC बने। 2010 में उदयभान की मौत के बाद बृजेश सिंह की पत्नी अन्नपूर्णा सिंह बसपा के टिकट पर यहां से MLC बनीं।
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ब्रजेश सिंह की पत्नी MLC हैं तो उनका भतीजा सुशील सिंह 2007 के बाद से लगातार चौथी चौथी बार भाजपा से विधायक हैं। सुशील 2007 और 2012 में चंदौली की धन्नापुर तो 2017 और 2022 में सैयदराजा सीट से विधायक चुने जा चुके हैं।