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वाराणसी

मां लक्ष्मी को करना है खुश, तो हर राशि के लोग इन शुभ मुहूर्त में करें पूजा 

हर राशि के लिए है शुभ मुहूर्त का अलग-अलग समय

वाराणसीOct 30, 2016 / 07:19 am

sarveshwari Mishra

Diwali Puja

Diwali Puja

वाराणसी.त्योहार चाहे जो भी हो लेकिन मुहूर्त का एक खास महत्व होता है। इस पर्व पर पूजा पाठ का खास महत्व होता है। क्योंकि सही मुहूर्त पर पूजा पाठ कर आप इस खास मौके का सही लाभ उठा सकते हैं।
दीपावली पर सभी लोग अपने घर में मां लक्ष्मी के स्वागत की तैयारियां करते हैं। इस साल विक्रम संवत् 2073 में कार्तिक कृष्ण अमावस्या रविवार 30 अक्टूबर को सूरज उगने से पहले ही शुरू होकर रात 12 बजकर 07 मिनट तक रहेगी। स्वाती नक्षत्र भी सुबह 09 बजकर 02 मिनट से शुरू होकर पूरी रात भर रहेगा और अगले दिन दोपहर 11 बजकर 50 मिनट पर खत्म होगी। 

इस दिन सुबह 07 बजकर 53 मिनट तक तुला के बाज 10 बजकर 15 मिनट तक वृश्चिक लग्न रहेगा। तुला लग्न में उच्च राशि का सूर्य, चन्द्रमा व बुध सहित विराजमान है। चित्रा और स्वाती नक्षत्र दोनों क्रमशः मृदु व चर संज्ञक है। इसमें सभी विवाहादि मंगल कार्य सफल होते हैं। इन लग्नों में ऑटोमोबाइल वर्कशॉप एवं बर्तन का व्यवसाय करने वाले व्यक्ति लक्ष्मी पूजन करें तो विशेषतः प्रशस्त रहेगा। सुबह 10 बजकर 16 मिनट से 12 बजकर 20 मिनट तक धनु लग्न रहेगी। धनु लग्न का स्वामी बृहस्पति दशम कर्म केंद्र में विराजमान है, इच्छित कामनाओं की पूर्ती का संकेत है। इसमें कल-कारखानों, ट्रांसपोर्टरों, डॉक्टरो और होटल का व्यवसाय करने वालों के लिए लक्ष्मी पूजन का विशेष मुहूर्त है।



दोपहर 12 बजकर 21 मिनट से दोपहर 02 बजकर 02 मिनट तक मकर लग्न अभिजित मुहूर्त रहेगा। लग्नेश द्वारा दृष्ट लग्न अत्यन्त बलवती समझी जाती है। शुभ चैघड़िया वकीलों, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, प्रॉपर्टी डीलरों को आकूत लक्ष्मी देने वाला है। दोपहर 02 बजकर 10 मिनट से 03 बजकर 30 मिनट तक कुम्भ और 04 बजकर 54 मिनट तक मीन लग्न रहेगी जो अपने स्वामी बृहस्पति से दृष्ट होने के कारण अनेक दोषों को निवारण करने की क्षमता रखती है। इस लग्न में दीपावली महालक्ष्मी पूजन करने व कराने वाले द्विजाचार्य भी माला-माल होंगे। मीन लग्न में विशेषकर तेजी-मंदी का व्यापार करने वालों, फ़ाइनैंसियरों को पूजा करनी चाहिए। शाम 04 बजकर 55 मिनट से 08 बजकर 25 मिनट तक मेष और वृष लग्न रहेगा।




प्रदोषकाल जिस समय का दीपावली-महालक्ष्मी पूजन में सबसे ज्यादा महत्व है। वह सायंकाल 05 बजकर 34 मिनट से रात्रि 08 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। प्रदोषकाल में ही मेष, वृष लग्न और शुभ-अमृत के चैघड़िया भी विद्यमान रहेंगे। प्रदोषकाल का अर्थ है दिन-रात्रि का संयोग। दिन विष्णुरूप और रात्रि लक्ष्मी रूपा है। प्रदोषका के स्वामी (अधिपति) अवढ़र दानी आशुतोष भगवान सदाशिव स्वयं है। इससे स्वाती नक्षत्र और लुम्बक योग व्यापारियों व गृहस्थियों के लिए दीपावली महालक्ष्मी, कुबेर, दवात-कलम, तराजू-बाट, तिजोरी इत्यादि पूजन से अक्षय श्रीप्रद एवं कल्याणकारी सिद्ध होगी। कदाचित् यदि इस लग्न में पूजनादि कृत्य की सुविधा प्राप्त न हो सके तो भी अभिष्ट पूजनार्थ पूजा स्थल में दीपक जलाकर प्रतिज्ञा संकल्प अवश्य कर लेना चाहिए। पुनः अपनी आस्था व सुविधानुसार अग्रदर्शित लग्न किसी शुभ-चैघड़िया, महानिशीयकाल और सिंह लग्न में महालक्ष्मी पूजन करना चाहिए।



रात्रि 08 बजकर 20 मिनट से मिथुन, कर्क लग्न, इसी में चर का चैघड़िया निशीय काल 12 बजकर 15 मिनट तक रहेगा। महानिशीय काल जिस पर घन की देवी लक्ष्मी की सम्पूर्ण दृष्टि भी रहेगी। इस अवधि में महालक्ष्मी पूजन, काली की उपासना विशेष काम्य प्रयोग व तंत्र अनुष्ठान आदि किए जाएं तो विशेष रूप से प्रशस्त एवम् श्लाघनीय रहेंगे। रविवार को स्वाती में बना लुम्बक योग राष्ट्र और समाज के लिए विशेष समृद्धि कारक माना गया है। उत्तर रात्रि लग्न सिंह 1 बजकर 4 मिनट से 3 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। यह भी व्यापार में अत्यन्त लाभ और लक्ष्मी जी की स्थिर प्रीति कराने वाला है।

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