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सपा ने यूपी विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस से गठबंधन किया था और लोकसभा चुनाव २०१९ में बसपा के साथ मिल कर पार्टी ने चुनाव लड़ा था। दोनों ही नतीजे सपा के लिए किसी झटके से कम नहीं थे। अखिलेश यादव की छवि जनता के बीच अच्छी बनी हुई है। सपा को पहले यादव के साथ अन्य पिछड़ा वर्ग का वोट मिलता था लेकिन बीजेपी ने जब से अन्य पिछड़ा वर्ग के नेताओं को बड़ी भूमिका देना शुरू किया है तब से अन्य पिछड़ा वर्ग के लोग बीजेपी से जुड़ते गये हैं और सपा कमजोर हो गयी है। लगातार चुनाव हार रही सपा को उपचुनाव परिणाम से बड़ी संजीवनी मिली है यदि सपा अकेले मैदान में उतरती है और अन्य पिछड़ा वर्ग के वोटरों को साधने में कामयाब रहती है तो पार्टी फिर से मजबूत स्थिति में आ सकती है।
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बसपा की स्थिति लगातार कमजोर होती जा रही है। सपा व बसपा गठबंधन में सबसे अधिक फायदा बसपा को मिला था इसके बाद मायावती ने गठबंधन तोड़ दिया था और कहा था कि सपा के वोट हमे नहीं मिले। उपचुनाव की बात की जाये तो बसपा को उसके परम्परागत वोट नहीं मिले। मुस्लिमों की बड़ी संख्या भी सपा के साथ गयी। इसके चलते बसपा एक भी सीट नहीं जीत पायी। बसपा की यही हालत रही तो यूपी चुनाव 2022 में वह बीजेपी को सीधी चुनौती देने में सक्षम नहीं होगी। यूपी में कांग्रेस का वोट प्रतिशत भले बड़ गया है लेकिन पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पायी है जबकि कहा जाता था कि प्रियंका लाओ और कांग्रेस बचाओ। प्रियंका गांधी अब राजनीति में पूर्ण रुप से सक्रिय हो चुकी है इसके बाद भी पार्टी को बड़ी जीत दिलाने में नाकामयाब साबित हो रही है ऐसी ही स्थिति रही तो कांग्रेस भी यूपी चुनाव में कमजोर विरोधी दल साबित हो सकती है। तीन चुनावों में हार के बाद अखिलेश यादव ने नयी रणनीति पर काम किया है। अखिलेश यादव ने साफ किया कि वह किसी दल से गठबंधन नहीं करेंगे। इस असर हुआ कि सपा अपनी सीट बचाने के साथ विधायकों की संख्या को भी बढ़ाने में कामयाब रही। लोगों का सपा से इसी तरह का जुड़ाव आगे भी रहा तो पार्टी बीजेपी के लिए मुख्य प्रतिद्वंदी दल बन जायेगा।
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